कई वर्षों बाद

सोच के देखो वर्षों बाद, अपनी नियती क्या होगी
जिस जग से हारे हैं हम तुम, उस जग की गति भी क्या होगी 
हम दोनो के सपने कब्र में, पैर फैला जब सो जाएँगे
तरह तरह के खूँटों में, जीवन के हम बँध जाएँगे
जब सोच बैठेगा विश्व सकल, तुम भूल चुकी अब मुझको हो,
छुप-छुप कर संदूकों से फिर, मेरा पत्र निकलता हो
तब फिर से तेरी आँखों में, प्रिये मेरा स्नेह छलकता हो

पशु ही तो हैं हम तुम दोनो, जो ये दुनिया हमे चराती है
दुनियादारी के रस्सो से, साँसे अपनी बँध जाती हैं
प्रेम के उपवन में कुछ पल, सब भूल के विचरण करते हैं
नियती की छड़ी खा हम सब फिर, उसकी मर्ज़ी से चल पड़ते हैं
जीवन के अंतिम क्षण में जब, हर इच्छा दिल की सूख चुकी,
तब मेरे गीतों से फिर से, तेरा ये हृदय मचलता हो
तब फिर से तेरी आँखों में, प्रिये मेरा स्नेह छलकता हो

मुठ्ठी भर की ये दुनिया, अरबों इसमे रहने वाले
फिर भी मनचाहे लोगों संग, रह पाते हैं किस्मत वाले
किस्मत का क्या, ले जहाँ चले, बेफ़िक्र चले हम जाएँगे
खड़े कहीं जब एक दूजे को, प्रत्यक्ष नज़र हम आएँगे
आगे बढ़, सब कुछ भूल, तुमको बाहों में भर लेने से,
कुछ क्षण ही सही मगर फिर से, दिल अपना साथ धड़कता हो
तब फिर से तेरी आँखों में, प्रिये मेरा स्नेह छलकता हो
 


तारीख: 30.06.2017                                    कुणाल









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