दिग दिगन्त में गूँजे मेरे भारत का जयगान।
कण-कण इस माटी का बोले, मेरा देश महान।।
उत्तर में उत्तुंग हिमालय बूढ़े बाबा जैसा।
गंगा-यमुना-सी दो बेटी रिश्ता अद्भुत कैसा।।
ऊँचे शिखरों पर आच्छादित विस्तृत नील वितान।
कण-कण इस माटी का बोले, मेरा देश महान।
वन-उपवन में भरी संपदा नैसर्गिक उपहार।
खेतों में प्रतिवर्ष उपजता जीवन का आधार।।
प्राकृतिक सुषमा का इसकी जग करता गुणगान।
कण-कण इस माटी का बोले, मेरा देश महान।।
इसके रत्नाकर की कोई थाह न अबतक पाया।
कनक-विहग से रूप ने इसके सारा जगत लुभाया।।
पग-पग पर संस्कृति इसकी बदले निज परिधान।
कण-कण इस माटी का बोले, मेरा देश महान।।
ऋषि-मुनि-संतों ने उच्चादर्श हमें सिखलाए।
वेद-पुराणादि ग्रंथों के सार हमें समझाए।।
आयुर्वेद साधना संयम का अद्भुत विज्ञान।
कण-कण इस माटी का बोले, मेरा देश महान।।