मैं निजप्रेमी निजप्रेम भाव से आगे बढ़ता
न मुड़ता पीछे वाले पीछे कितना छूट गए
पर जो छूट गए वो छूट गए
दोहराता चलता
बढ़ता रहता आगे को ।
मानो हर पग पुलकित पुष्पों से
हर गली सुगन्धित कलियों की लड़ियों से महकी गलियां
हर द्वार खुला आगे वाला
मैं चलता
पर पहले मुड़ के देखा करता
बस इसीलिए कि कहीं खुला न रह जाए
द्वार पीछे वाला
मैं मतवाला
अपनी ही मस्ती का झोला ले बढ़ता न पीछे मुड़ता।
फिर एक दिन उन में से एक
मुझ तक पहुंचे
थे हांफ रहे
मुझे लगा ये कोई मुसाफ़िर होंगे इसी वक्त के ही
पर वो करीब हुए
गले मिले
न जाने गले मिले या गले पड़े
कहते
"अरे भैया तुम तो भूल गये"
मैं भी बोला "नहीं नहीं
और सुनाओ कैसे हो?"
हम बैठे दोनों बतियाए हर बात पुरानी याद करी
हर ख़ुशी के पहलू याद किये
हर गम की घड़ियाँ याद करीं।
हर उठते गिरते लम्हों को
याद किया हंसकर रो कर
याद किये वो पल भी जब
था मैं गिरना वाला तब
तब उसने हाथ बढ़ाया था
मैं भरा हुआ भावों से मेरा दिल भर आया था।
रोना चाहा खूब
चाहा खूब कि मुड़के देखूं पीछे
जो पीछे छूट गए उन्हें याद करूँ
पर फिर क्या?
द्वार खुला इक और नया
मैं तार तार मौजों से भरा
हुआ खड़ा
आगे को बढ़ा
बहुत मिले पीछे वाले
हाथ मिलाया, आँख झुकाई
रुका नहीं
फिर चला रहा
हर द्वार द्वार
हर गली गली।।