रक्तदान - मेरा अनुभव

रक्त दान महा दान ,शायद इसलिए की इसकी अनुभूति सर्वश्रेस्ठ है, कल मै भी इस पुण्य का हक़दार बना ।रोज की भाति मैं कल जब लाइब्रेरी गया तो देखा वहा आज रक्तदान का शिविर लगा था, मन में एक पल को हुआ हमे भी करना चाहिए पर मैं वहा रुका नही चलता रहा,लाइब्रेरी में गया और बैठा समाचार पढ़ रहा था कि वहां मेरे एक मित्र से रक्तदान शिविर के बारे में चर्चा हूइ ,उन्होंने मुझे प्रेरित किया की हमे करना चाहिए 

बस अंतर्मन में तो यही ऊर्जा थी जरूरत थी तो उस जामवंत रूपी मित्र की जो मन में एक साहस भर दे ,फिर क्या हम दोनों गए हमने फ़ॉर्म भरा कुछ स्वास्थ्य संबंधित जरुरी सवालों के जबाब दिए और परिणामस्वरूप हमे अनुमति मिल गयी ,रक्तदान की प्रक्रिया शुरू हुइ तभी निरीक्षक महोदय निरिक्षण को आ पहुचे ,उन्होंने शिविर का जायजा किया और सबसे मिले वहां पर मैंने देखा हमे देख उनके चेहरे पर एक अलग सी मुस्कान और संतुस्टि और स्नेह का भाव था

Raktdaan

हमसे हमारा परिचय लिया और ये जान उन्हें अतीव आनंद हुआ की हमारी उम्र सिर्फ बीस वर्ष है ; वो भाव से भरा एक मुस्कान और शुभकामनाये हमे दिए और साथियो संग कुछ बातें करते चले गए ।वहां उन्होंने हम में हमारे उस नई पीढ़ी को देखा जो आजकल फैशन की चकाचौध और मस्ती की दुनिया में जी रही है पर उसका ये स्वरुप देख उन्हें बड़ा सुकून महसूस हुआ कि हमारी पीढ़ी अब उन आडम्बरो से निकल कर एक समाज के निःस्वार्थ कार्य में भी सलग्न है जो उन लोगो के लिए किया जा रहा है जिनसे हमारा रिश्ता सिर्फ मानवता का है।

उनके मन की खुःशी हमारे युवा पीढ़ी के बदलते विचार से थी जो रक्तदान जैसे महान समाज सेवा में भी बढ़चढ़कर हिस्सा ले रही है।असल मायने में हम युवा ही अपने राष्ट्र के सूत्रधार है, हमारे अन्दर वो शक्ति है जो हम परोपकार में परिणित कर सकते है।हमे चाहिए कि हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा जो आज इन कार्यो से अलग होता चला जा रहा है उसे सही दिशा में लाने का प्रयास करे। ‎ 


तारीख: 07.06.2017                                    शुभेंद्र सिंह









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