स्वप्न

बादलों की ओट में खिला छुपा चाँद 
पहाड़ों की पर जाती पगडण्डी 
मन आकाश में 
चाँद के इंतजार में

घुप्प अंधेरा रात स्याही 
विरहन सी 
पत्तो की सरसराहट 
उल्लू की कराहती आवाजे 

लगता मृत्यु जीवन को गले लगाए बैठी 
चाँद निकला बादलों से 
सूखे दरख्तो सूखी नदियों ने 
ओढ रखा हो धवल चाँदनी का कफ़न
 
जंगल कम ,नदियाँ प्रदूषित हो सूखी 
मानों ऐसा  लगता 
मौत हो चुकी पर्यावरण की 

धरा से आँखे चुराता चाँद 
छूप जाता बादलों की ओट 
निंद्रा टूटी स्वप्न छूटा 

भोर हुई वसंत आया 
नई  उम्मीदों से जंगल सजाने 
नदियों की कलकल 
चिड़ियों की चचहाहट ने दिया 
पर्यावरण को पुनर्जन्म 


तारीख: 10.06.2017                                    संजय वर्मा "दर्ष्टि "









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है