आईने कभी भी हमें सच नहीं दिखाते
जेहन मे क्या है किसी के नहीं बताते ।
संवरते हैं लोग कब, किस मकसद से
चेहरे पे वो कभी उभरकर नहीं आते ।
रौशनी है गुनाहगार हर अक़्स के लिए
वरना अंधेरे हमसे कुछ नहीं छिपाते ।
कर्जदार है चाँद ,सूरज का सदियों से
तारे उधार की नूर से नहीं टिमटिमाते ।
जो है,जितना है उसी में खुश रह अजय
वक्त से पहले ,हक़ से ज्यादा ,नहीं पाते