जिसको छुप छुप मैं तकती थी,,
जिसपे सच मुच मैं मरती थी,,
जिसकी आहें मैं भरती थी,,
जिसकी चिट्ठीयां मैं पढ़ती थी,,
ये तो वही दिवाना है,,
जिसकी बातों में जादू था,,
दिल जिसके लिए बेकाबू था,,
जिसकी आखों में रव़ानी थी,,
जिसकी मैं दिवानी थी,,
ये तो वही दिवाना है,,
जिसने मिलने बुलाया था,,
जिसने उंगली को दबाया था,,
जिसकी बांहो में थी मैं झूमी,,
जिसके अधरो को थी मैं चूमी,,
ये तो वही दिवाना है,,
जिसके बालों में उंगली घुमाई थी,,
जिसने अपनी गजल़े सुनाई थी,,
जिसके ख्वाबों की मै रानी थी,,
जिसके योवन की मैं जवानी थी,,
ये तो वही दिवाना है,,
जिसने कसमें भी खाई थी,,
जिसने रस्म़ें निभाई थी,,
जिसको धोखा दिया मैनें,,
जिसको दग़ा दे आई थी,,
ये तो वही दिवाना है,,