शायद मुझको प्यार हुआ है

जब से देखा है तुझको , मैं 
हर शै में तुझको ही पाऊं
चाहूँ तुझको पास बुलाऊँ
या फिर तेरे पास मैं आऊँ
सोचूं तुझको, कहूँ ना कुछ भी
पर सबकुछ कह देना चाहूँ 
रोकूँ खुद को, रुकूँ ना फिर भी
चलते चलते मैं खो जाऊं  
जाने ऐसा क्यूँ होता है 

मुझको दे आवाज़ जो कोई 
लगता है तू बुला रही है 
सोता हूँ तो लगता है तू 
लोरी गाकर सुला रही है 
सबकुछ उल्टा-सीधा सा है 
तू अंतर के इक कोने से
रोता हूँ तो हंसा रही है,
हँसता हूँ तो रुला रही है 
जाने ऐसा क्यूँ होता है 

कभी-कभी ये लगता है 
जैसे तू मेरे बहुत पास है 
कभी-कभी तू मेरी आँखों से 
ओझिल होती जाती है 
कभी-कभी ये आँचल तेरा 
आँखों को मेरी ढकता है 
कभी-कभी तू मेरी कल्पना पर 
बोझिल होती जाती है 
जाने ऐसा क्यूँ होता है 

जाने ऐसा क्यूँ होता है 
एक बार मिलने पर ही 
ऐसा लगता है 
जैसे जन्मों का नाता हो 

जाने ऐसा क्यूँ होता है 
लगता है जैसे बचपन से 
यह साया ही 
सपनों में हर रोज़ 
यूँ ही आता जाता हो

जाने ऐसा क्यूँ होता है 


मन में इक आवेग उठा है, 
ठहर रही है मेरी कल्पना  
शायद मुझको प्यार हुआ है 
शायद मुझको प्यार हुआ है ...
 


तारीख: 06.06.2017                                    मनीष शर्मा




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