पक्षियों के कलरव, गिलहरी की उछल-कूद में
रंग-बिरंगे फ़ूलों, पत्तों की सरसराहट में
एक लड़की गाते-गुनगुनाते
ढूंढती है प्रेम
दूर मुंडेर पर बैठा मैं
उसे ऐसा करते निहारता
निस्सीम, निस्पंद मौन
सोचता हूँ
क्या आएगा प्यार उसके भी जीवन में?
जैसे आता है किसलय
द्रुमों पर 'पतझड़' के बाद।।