आज़ाद गजल

आइना मुझको मेरी औकात बताता है 
कूछ इस  तरह से हर   रोज़  सताता है ।
जब कभी भी सामने   गया हूँ मैं उसके 
उम्र ढल   जाने का एहसास   कराता है ।
लाख   कर लूँ जतन   खुश रहने की मैं 
हाल-ए-मुल्क   मेरा मुझको   रुलाता है ।
मसअले   मुझसे बेहद मुतमईन हैं रहते 
और चैनो  अमन दूर से ही मुस्कुराता है ।
ज़िंदगी की   अदा भी   कमाल है   यारों 
मर के है जिंदा,कोई ज़िंदा मर जाता है ।


तारीख: 05.03.2024                                    अजय प्रसाद









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