आदमी का अपने जीवन में कई तरह के गुरुओं से पाला पड़ता है। आदमी जैसे-जैसे
अपने जीवन में आगे बढ़ता जाता है वैसे-वैसे गुरु भी बदलते जाते हैं। कहा
जाता है कि बच्चे के लिए मां प्रारंभिक गुरु होती है। मां बच्चे को घर पर
जीवन के कायदे कानून और संस्कृति की जानकारी देती है। मां बच्चे को
चलना-फिरना, बोलना-बतियाना सिखाती है। यहां तक की समाज में उठना-बैठना भी
सिखाती है।
बच्चा जब स्कूल जाता है तो स्कूल में उसे एक अलग प्रकार के गुरु के दर्शन
होते हैं। वह गुरु उसे पढ़ना-लिखना सिखाता है जो उसके जीवन का मुख्य आधार
होता है। उसी गुरु के मार्गदर्शन में बच्चा प्रतियोगिता की भावना ने
ओतप्रोत होता है और क्लास में अच्छे परिणाम लाता है। बच्चे के परिणाम से
गुरु भी खुश होता है और बच्चा भी।
पिता भी बच्चे का एक गुरु होता है जो बच्चे को जीवन में सफलता के लिए कई
प्रकार की जानकारियां देता है। इसी लिए कहावत भी है बाढ़े पूत पिता के घर
में। कई लोगों को अकसर आपने कहते सुना होगा कि यह बच्चा ठीक अपने पिता पर
गया है। कई बार तो यह भी देखा गया है कि पिता के नैतिक और अनैतिक कार्य
में बच्चा भी बड़ा होकर सहभागी हो जाता है।
जब बच्चा बड़ा होकर किसी नौकरी में आता है तब उसे काम सिखाने वाला भी
गुरु होता है। यह गुरु उसे आफिस के कल्चर को सिखलाता है। आफिस में कैसे
काम करना है। आफिस में लोगों से किस प्रकार बातें करनी है। आफिस में आने
वाले लोगों से किस प्रकार मिलना है। यह सब आफिस के गुरु सिखाते हैं।
गुरुदीक्षा देने वाले भी एक प्रकार के गुरु होते हैं जो आदमी को मठ और
विभिन्न प्रकार की धार्मिक संस्थाओं से जोड़ते हैं। वैसे पुस्तके भी गुरु
होती हैं। जो मनुष्य को ज्ञान देने का काम करती हैं।
इनदिनों तो सोशल मीडिया के फेसबुक और वाट्सएप भी डिजिटल गुरु हो गये हैं।
इसमें पाये जाने वाले गुरु भी लोगों को बताते हैं कि कैसे एक-दूसरे से
प्यार करना है। यहां तक कि नफरत फैलाने की भी जानकारी देते हैं। इन
गुरुओं की वजह से कई शहरों में दंगे भी हो चुके हैं। इन गुरुओं की वजह से
नेताओं को वोट भी मिलते हैं। इन गुरुओं की वजह से अपराधियों को अपराध
करने की जानकारी भी मिलती है। इन गुरुओं की वजह से राजनीतिक दलों के
नेताओं को वोट भी मिलते हैं। चुनाव के वक्त में मोबाइल पर नेता गुरु के
कॉल लोगों को आते हैं कि उन्हें किसे वोट देना चाहिए और किसे नहीं।
इन सबके बावजूद मनुष्य की अंतिम गुरु बीवी होती है। अगर बीवी न होतो जीवन
के अंतिम गुरु की जगह खाली रह जाती है। जाहिर है आदमी अपनी बीवी से भी
बहुत कुछ सीख लेता है। घर मे खाना बनाना, झाड़ू-पोछे लगाना, बच्चों को
स्नान कराना और कपड़े बदलता इत्यादि। बीवी आदमी को यह भी सिखाती है कि
उम्र के साथ-साथ उसे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। किसी तरह से
बातें करना चाहिए।
कभी-कभी तो पति की गलत हरकत पर रोक-टोक करके भी बीवी अपने गुरु होने का
अहसास जता देती है। इसलिए मैं मानता हॅूं कि व्यक्ति के जीवन की अंतिम
गुरु उसकी बीवी होती है। इसके बाद उसे किसी अन्य गुरु की जरूरत नहीं
पड़ती। इन परिस्थितियों में यह नहीं कहा जा सकता कि जीवनं सिर्फ एक गुरु
के भरोसे चलता।