दास्तान- ए- सर्टिफिकेट

जब हम पधारे जगत में.....पिता जी भागे , बर्थ सर्टिफिकेट की जुगत में! पहले नर्सों ने लूटा फिर बाबुओं ने... तब जाकर हमें प्रमाण पत्र मिला कि हमने फलां फलां तारीख को फलां जगह अवतार लिया है। बंदा 115 साल का भी हो जाए तो भी बर्थ सर्टिफिकेट  गले में लटकाए लटकाए घूमना पड़ता है।
         जैसे ही नवंबर का महीना चढ़ता है, सरकारी विभाग मेैेसेज पर मैसेज डालने लग जाते हैं कि आप दफ्तर में आकर प्रूव करो कि आप इस जहां मंे कायम हैं। बंदा जितना मर्जी जिन्दादिल हो, उसे एक बार संबंधित आफिस में जाकर बताना ही पड़ता है कि मैं सचमुच जिन्दा हूं।  सरकारी आदेशों के आगे नतमस्तक होकर बाबू के सामने लिख कर देना ही पड़़ता है कि हजूरे आला मैं 90 साला जवान आपकी अदालत मंे ब -होशो - हवास हाजिर हूं ..... बेशक छू कर देख लो और यह भी  सत्यापित  करता हूं कि  मैंनें पिछले एक साल में किसी जवान या बुढ़िया से शादी या निकाह नहीं किया है। गत एक वर्ष में न कोई नौकरी ही की है।
        बाबू राम लाल एक बार  , हाथ में छड़ी पकड़े अपने पेंरेट आफिस में पेंशन न मिलने की शिकायत करने  पहुंचे तो वहां के बाबू ने रिकार्ड देख कर बोला- हमारे रिकार्ड के मुताबिक आप पिछले साल अकाल चलाना कर चुके हैं, डिपार्टमेंट पेंशन क्यों और किसे दे ? रामलाल गिड़गिड़ाए- ‘भाई जान! मैं पिछले साल नवंबर में बाकायदा लाईफ सर्टिफिकेट दे कर गया था और अब भी देने को तैयार हूं। बाबू बिगड़ गया  ,‘आप सही हैं या सरकारी रिकार्ड ? अब तो मैजिस्ट्र्ेट ही सर्टिफिकेट ईशू करेगा कि आप जिन्दा हैं। हम कुछ नहीं कर सकते।’
      हालांकि हमारे देश में आज भी  कितने ही स्वर्गीय अपने अपने बैंक खातों में पेंशन और सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं।
            सरकारी तंत्र बंदे को जन्म से मरण तक सर्टिफिकेट में उलझाए रखता है। स्कूल में बर्थ सर्टिफिकेट, स्कूल छोड़ने का सर्टिफिकेट, हर परीक्षा पास करने का, फिर नौकरी में कैरेक्टर सर्टिफिकेट ताकि इस बात की गारंटी रहे कि आप कार्यालय में किसी महिला कर्मी की ओर आंख उठा कर नहीं देखेंगे। अब सबको अपने अपने चरित्र का पता ही होता है परंतु जब कोई सरकारी विभाग आपको अपनी मोहर लगा कर अटेस्ट कर के कैरेक्टर सर्टिफिकेट दे देता है तो बैड कैरेक्टर भी गुड कैरेक्टर बन जाता है। कहीं नो आब्जैक्शन सर्टिफिकेट तो कहीं फलां सर्टिफिकेट। 
      एक आंकड़े के मुताबिक भारत सरकार 509 किस्म के सर्टिफिकेट जारी करती है । बस कुछ के नाम बदल गए हैं- आधार कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर कार्ड,सिटिजन कार्ड, इंडियन ओरिजन कार्ड,पैन कार्ड वगैरा वगैरा।घर पर एक सर्टिफिकेट की फाईल दिन ब दिन मोटी होती जा रही है।
       कोरोना काल में तो दो डोज़ खुराक का सर्टिफिकेट लेने के लिए घंटों लाइन में लगे, धूप में सडे़, गेट कीपरों से लड़े, अनाड़ी नर्सोे के पल्ले पड़े, वैक्सीन की जगह ,फोके पानी के इंजैक्शन सहे, डाक्टरों पर चढ़े, पुलिस से भिड़े...... तब जाकर प्रूव कर सके कि अब हम ,कोरोना प्रूफ हैं। अपने ही विभाग में नारा बदल गया- दो गज की दूरी -सर्टिफिकेट है जरुरी।
      नए वेरिंएट के कारण अब तो गले में ही हम दो डोज़ का सर्टिफिकेट टांगे टांगे घूम रहे हैं। दूकानदार तक सौदा देने से पहले पूछ रहा है  ,‘दोनों वैक्सीन लगवा रखी है न ? नहीं तो हमंे भी लपेटे में ले लो!’ बस, रेल ,जहाज, पिक्चर हॉल, मॉल.... जहां देखंे...... हाल बेहाल है। हाथ मंे मोबाइल पकड़े, उसमें आरोग्य सेतु घुसेड़े हम हर जगह अपनी चैकिंग करवा ते, मास्क में मुंह छिपाए छिपाए घूम रहे हैं। यहां तक कि ‘आरटी पी सी आर’ रिपोर्ट भी हथेली पर लिए घूम रहे हैं । न जाने कहां चैकिंग हो जाए ?  पिक्चर हॉल में गेट कीपर से मनुहार कर रहे हैं,‘भैया बहुत दिनों बाद पिक्चर देखने आए हैं  ......अंदर जाने दो .......ये देखो टिकट के साथ साथ  सारे डाक्युमेंट्स भी लाए हैं।’
      कई लोग बड़े दूरदर्शी होते हैं।  उन्हें पूर्ण विश्वास होता है कि उनके साहबजादे जीते जी तो कुछ कर नहीं रहे , मरने के बाद भी क्या करेंगे ! सो धार्मिक आस्था के अनुसार वे किसी भी  तीर्थ स्थल पर जाकर एडवांस में ही अपना किरया कर्म और श्राद्ध तक निपटा लेते हैं। उन्हें भारतीय व्यवस्था पर पूर्ण भरोसा है कि ऑन लाइन प्रक्रिया के बावजूद कोई सर्टिफिकेट आसानी से मिल पाएगा ? उन्हें पुरानी कहावत पर आज भी विश्वास है कि तोप का लाइसेंस अप्लाई करो तो बंदूक का मिलेगा। दादा मुकदमा दायर करेगा तो परपोते को न्याय मिलेगा। सरकारी  दफ्तरों की सूरते हाल देखकर उन्होंने एडवांस में ही डेथ सर्टिफिकेट एप्लाई कर दिया है।


तारीख: 15.03.2024                                    मदन गुप्ता सपाटू









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