माले मुफ्त... दिले बेरहम

इन दिनों सोशल मीडिया पर एक नई आत्मनिर्भर बिरादरी बड़े जोरों शोरों से उभर रही है। वह है फूड ब्लॉगर.......माले मुफ्त दिले बेरहम। जिसे देखो वही मोबाइल उठाए सुबह 4 बजे, घर से निकल पड़ता है और पूरी छोले वाली दूकानों, या रेहड़ियों पर धावा बोल देता है। कई बार मियां बीबी भी धमक पड़ते हैं। बीबी मोबाइल का कैमरा फोकस करती है तो ये श्रीमान इंटरव्यू लेने लगते हैं। इनकी भाषा ,साक्षात्कार का तरीका और फूहड़ एंकरिेंग हर जगह एक ही होती है ।
टी.वी पर फूड चैनल वालों को तो खाना या रेसिपी कैमरे के आगे बना कर दिखानी पड़ती है परंतु इन चलते फिरते ब्लॉगर्स की हींग लगे न.... फिटकरी रंग चोखा।

     ये जहां जाते हैं ,शुरु हो जाते हैं- अंकल जी! भैया जी.! आप पूरी छोले बेच रहे हैें। कैमरा पूरियों को फोकस करता है। और ये खुशी के मारे उछलते हैं- ओहो भाई साहब! ये देखो कितनी फूली फूली पूरियां है.....बिल्कुल फुटबॉल जैसी....एक घंटे बाद भी पिचकी नहीं ,मैंने तो आज तक इतनी बड़ी देखी नहीं। भाई साहब चैक करो । - अंकल आप चने कैसे बनाते है? ये भी बड़े लाजवाब लग रहे हैं। छोलों के साथ आलू की लौंजी भी, अच्छा खटट्ी मीठी चटनी ,पुदीने- धनिया की । कमाल है अंकल। आपकी दुकान कितनी पुरानी हैे और आप कब से पूरियां थपक रहे हैं?
हलवाई , ग्राहकांे को निपटाते हुए इनको भी भुगत रहा है-यही कोई 300 साल पुरानी और मैं यहां 80 साल से हंू। ंहमारे परदादा ने इसे खोला था। ब्लॉगर हलवाई की मूछांे पर कैमरा केंद्रित करके कहता है-देखिए भाई साब !अस्सी साल के अंकल कितनी मेंहनत कर रहे हैं। यहां नाश्ता करने वालों की कितनी लंबी लाईन सुबह पांच बजे से ही लग गई है। वह एक ग्राहक से पूछता है- आप यहां कब से पूरियां खा रहे हैंे। वह बताता है कि बचपन से खा रहा हंू। अंकल जी अपनी रेहड़ी की लोकेशन और अपना मोबाइल नंबर बता दो। दुकानदार बताता है- पंजाब नेशनल बैंक के सामने, मेट्रो के 21 नंबर पिल्लर के नीचे। फिर ब्लॉगर मुदद्े पर आता है- अंकल जी हमारी भी दो प्लेटें लगा दो। जाहिर है हलवाई इतनी तारीफ सुनकर दो नहीं चार प्लेटें लगा देगा!
चलिए ब्रेकफास्ट की पहली किश्त तो निपटी लेकिन दिन अभी बाकी है शिकार अभी बाकी हैं।
      आठ बजे ये जनाब पहुंच जाते हैं पराठे वाली गली। अंदाज वही। एक दुकान के साईन  बोर्ड को फोकस करते हुए अंदर ही घुस जाते हैं औेर शुरु हो जाते हैं- अंकल जी पराठे बन रहे हैं...कितनी किस्म के बनाते है? हलवाई का कारिंदा भी पराठों को घी में नहलाते ,कड़छी से घुमाते हुए एक स्वर में बताता है-आलू प्याज गोभी,पापड़,गोभी,ड्राईफ्रूट, मलाई के,36 तरह के ...बताओ कौन सा खाओेगे। कूपन ले लो। कूपन का नाम सुनते इनका स्वाद बिगड़ जाता है परंतु ये भी अपने फन के माहिर है। तपाक से पूछने लगे कि यह दुकान कितनी पुरानी है? कारिंदा ,दीवार पर लटकी फोटो की ओर इशारा करते हुए बताता है कि 500 साल पुरानी है। अब वह पूछ ही रहा है तो छोड़ने में क्या हर्ज़ है। आटे की लोई में आलू भरते हुए चालू रहता है- बहादुर शाह ज़फर भी कई बार लाल किले से टहलते हुए इधर मलाई का पराठा नोश फरमा जाते थे। चचा गालिब तो बगल में ही रहते थे। हमारा पराठा खाए बगैर उनकी कलम से एक भी शेर  नहीं निकलता था। पूरे के पूरे दीवान उन्होंने हमारे 36 रंगी पराठे खाने के बाद ही लिखे। ब्लॉगर का मुंह पानी से लबलबाने लगा। वह कैमरे की तरफ मुड़ कर बोलता है- देख लो भाई साहब!चैक कर लो सबसे पुरानी दुकान है। भैया ये कया है? हलवाई उसकी जनरल नालेज में इज़ाफा करते हुए बताता है-ये कददू की सब्जी,ये पंचरंगा अचार,ये आलू की सूखी सब्जी,ये रायता ये मलाई वाली लस्सी....।
ब्लॉगर जिस उदे्श्य से आया था, वह पूरा होने लगा। उसने चिरौरी करने के  अंदाज में कहा- तो लाला जी एक मलाई वाला और एक ड्र्ाई फू्रट का लगा दो।
      नौ बजनेे लगे हैं ,अब वह लस्सी की दुकान पर सुशोभित हो गया है।   दुकानदार के गले में कॉलर माइक फंसा कर नॉन स्टाप शुरु हो जाता  है - भाई जी ! आप कब से लस्सी बना रहे हैं? मुंडू दही रिड़कते हुए उस पर ज्यादा ध्यान न देकर गिलास गिनता है और बीच में ही बोल देता है- सुबह 6 बजे से बना रहा हूं। वाह भाई साहब, चैक करलो ....इतनी गाढ़ी मलाई ,रबड़ी और मेवों से ओवर लोडिड लस्सी आपको इस शहर में और कहीं नहीं मिलेगी । जब आपको ठंडाई या लस्सी पीने का मन करे तो इस दुकान को पाइया जी लस्सी वालों को कभी न भूलिए। कुछ फोटो की ओर इशारा करके कहता है-बड़े बड़े एक्टर लोग इनके यहां ही लस्सी पीने आते हैं।ं ऐसी लस्सी आपको अमृतसर में भी नहीं मिलेगी वो भी 40 में बड़ा गिलास। मलाई चाटते हुए वह पूरा विज्ञापन यू टयूब पर लगे हाथ अपलोड कर देता है। इतने में पाइया जी भी आ जाते हैं और अपनी तारीफ सुनकर कुछ फैल जाते हैं- ओ जी ऐत्थे ते प्रधान मंत्री वी साडी लस्सी पी चुके ने। अंबैस्डर लोग भी यहीं आते हैं और ब्लॉगर की लस्सी वसूल।
      फिर ये जनाब डकार लेते हुए ,फलूदे वाले का अभिवादन करते हुए काउंटर पर ही लटक़ जाते हैं- सरदार जी सत् श्री अकाल! अपना नां की है ते दूकान दा की है नाले अपना पता ते मोबाइल नंबर वी दस दियो। वही जुमले- ओह भाई साहब देख लो ऐसी रबड़ी और फलूदा पूरे वर्ल्ड में कहीं नहीं दिखेगा। फलूदा एडवांस में वसूल कर मुंह में सेमियां लटकाते हुए अपना फर्ज पूरा करते हैं- सरदार जी रबडी आप बनांउंदे हो? सरदार जी बताते हैं- आहो बादशाहो! मज्झां घरे ही पाली आं। पेवर दुध पेवर रबड़ी।
      अभी फलाहार बाकी है। एक रेहड़ी पर फ्रूट चाट नजर आती है और ये जनाब शुरु- भैया....कब से लगा रहे हो?  कितनी पत्तलें बिक जाती है़। एक पत्ता हमारे लिए भी लगा दो। पाईनेपल ज्यादा डाल देना। भैया ऐसे ब्लॉगर दिन में कई बार भुगतता है।
लंच का वक्त है। इनका निशाना राजस्थान की 36 व्यंजनों की थाली, दाल बाटी चूरमा, घी की नदियों पर है। और ये बैरे का इंटरव्यू लेकर अपने स्टाईल में एनकरिगं करते हुए टाटा करके नौ दो ग्यारह हो जाते हैें।
    खाना कैसे हजम हो इसके लिए इनकी तलाश शिकंजवी वाले की है जो अगले मोड़ पर गोली वाली बोतल में सोडा भर कर एक हैंडल से चार बोतलें खूब घुमाता है और आठ फलेवर में गिलास बनाता है। ग्राहक को पकड़ा कर उसमें एक चूर्ण डालता है जिससे सोडा फुलझड़ी की तरह फेैल जाता है। इसका नाम ही फुलझड़ा सोडा है। ये दो गिलास डकार के अपनी राय देकर चलते बनते हैं।
फिर धावा बोलते हैं गोलगप्पे वाले के। आरंभ करते हैं- कितनी तरह का पानी हैै? अच्छा 10 तरह का ! सूजी वाले कैसे लगाए और आटे वाले कैसे? भैया इनके हाव भाव से जायजा ले लेता है और इन्हीं की तारीफ करते हुए, अपना प्रचार कर लेता है। साथ में 10 गोलगप्पे एक साथ पकड़ा देता कि लगे रहो मुन्ना भाई।
      एक एपीसोड में ये जनाब अमृतसर की तंग गलियों में पुरानी बिल्डिंगांे को दिखाते हुए एक कुलचे छोले  वाले के तंदूर को फोकस करते है। दुकान की लोकेशन,वातावरण बिल्कुल अनहाईजीनिक है। तंदूरिया जिस हाथ से माथे का पसीना पोंछ रहा है ,उसी से कुलचे की लोई बना रहा है। गर्मी है। परोसने वाला पहले अपनी मूंछांे पर हाथ फेरता है फिर उसी से कुलचों पर मूल मक्ख्ण मूल मक्ख्ण चिल्लाता और चिपकाता दिखता है। एक नौकर जिस साफे से टेबल साफ कर रहा है,उसी से प्लेटें भी पोछ रहा है। मक्खियों की फौेज अलग से अपना युद्ध लड़ रही हैं। फिर भी ये महाशय लगे हैं- आज हम मोती राम के कुल्चे खाने निकले हैं जो यहां की सबसे पुरानी दुकान है । - अंकल जी ये दुकान कितनी पुरानी है? मोती राम जी नोट  गिनते हुए जवाब देते है-बस बादशाहो जदों दी गुरु नगरी वसी है,साडे बुजुर्गां ने ऐत्थे ही तंदूर गाड़ दित्ता सी। गर्मागर्म चूर चूर कुलचा देख कर इनसे रहा नहीं जाता और ये अपनी कमंेट्री चालू कर देते हैं- पूरे इंडिया में ऐसा स्वाद कहीं नहीं मिलेगा इतने कुरकुरे,खस्ता,फुली ओवर पैक्ड, ओ हो !भाई साब जरा चैक करो इनकी प्लेट में दो कुल्चे, छोले, सलाद,अचार,लस्सी सिर्फ 40 रुपये में।
    जाहिर है इतनी तारीफ तो लोमड़ी ने जब कौए आगे की होगी उसने भी पनीर का टुकड़ा गिरा दिया था।
      एक ऐसे ही श्री मान चांदनी चौक में एक साथ छोले भटूरे,जलेबियां, खुरचन,समोसे निपटा रहे हैं। अंदाजे ब्यां सबका एक सा ही। - ओह माय गॉड! इतना फूला तो जल्दी राम के यहां भी नहीं मिलता। ओए होए....पीठी वाले भटूरे.....मैंने कभी देखे तक नहीं। छोलों का तो अंकल ने पहाड़ बना दिया है। आप यहां सुबह पांच बजे भी आएंगे, आपको इतनी लंबी लाइन ही मिलेगी। लोग दो दो घंटे वेट करते हैं। कई घरों में ब्रेकफास्ट इन्हीं की प्लेट से होता है। रात ग्यारह बजे तक अंकल फ्री नहीं होते। और जनाब को एक फुली ओवर लोडिड प्लेट कंप्ली मेंट्र्ी।
     अब इनका दिल लखनऊ की मक्कखन मलाई,बनारस की मलइयो ,दिल्ली की दौलत की चाट के लिए मचल उठता हैं। लखनऊ बिना टिकट पहंुचते हैं या टिकट लेकर ये तो वही जानें। ठीक सुबह चार बजे मंकी कैप में छिपे हुए,ठिरठुराते हुए चौक की एक गली में जहां मक्कखन मलाई को हाथों से बिलोया जा रहा है। और ये श्रीमान उनके हाथ से मथानी लेकर खंुद बिलोने लग जाते हें और पांच मिनट में ही खल्लास हो जाते है। मछली की आंख की तरह इनके चक्षु भी उठ रही झाग पर लगे हैं कि कब ये तैयार हों और ये लपक लें। सब्र का फल मीठा होता है,इस उम्मीद से तीन घंटे इंतजार करते हैं। और पत्ते चाट कर वीडियो बना कर आगे चल देते हैं                                          
      राम भरोसे की दुकान पर जहां की मलाई की गिलौरी प्रसिद्ध है। राम भरोसे खुले दिल के हैं। उन्होंने इन जनाब को पूरी रसेाई दिखाई जहां कई कढ़ाओं में दूध की मलाई निकाल कर एक बडी ट्र््े में फैलाई जा रही थी। राम भरोसे ने मलाई की ताजी गिलौरी इनके मंुह में ठूंस दी और इनसे मोबाइल लेकर अपना पूरा विज्ञापन लाइव ही ठोंक डाला।  ब्लॉगर की निगाहें सोने की वर्क लगी बरफी पर टिकी रहीं और ये लार टपकाते हुए बाहर आ गए।
अब लखनऊ आए हैं तो मुंडे के कवाब भी चखते जाएं। सो ये जनाब हाजिर। अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए टेस्ट करते करते वीडियो बनाते हुए तीन चार कवाब चट कर गए। इस रेसिपी का रहस्य जानने की कोशिश की तो मियां जी ने बताया कि इसमें कच्चा पपीता पड़ता है। बाकी 36 हमारे सीक्रेट मसाले है जो हमारे बुजुर्ग डालते थे।
     लिटट्ी चोखा की रेहड़ी हो या मूंगफली की छाबड़ी,ये प्राणी किसी को नहीं बख्शते।
  सोचने लगे अब उत्तर प्रदेश के कानपुर में भी हो लिया जाए। बग्गू के लडडू का ज़ायका भी ले लिया जाए और ये रिक्शा करके ऐसी दुकान के आगे रुके जिस पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था- ऐसा कोई सगा नहीं जिसे हमने ठगा नहीं? जैसे ही इन्होंने मोबाइल  घु.माने की शुरुआत की, उधर से मालिक भडके- अबे ओ... बिना पूछे वीडियो कैसे बना रहा है बे? अभी कान के नीचे देंगे एक कंटा और मोबाइल तल देंगे पकौड़ों के साथ । कहां से आया है बे? इनकी फूक सरक गई। पहली बार सेर को सवा सेर टकरा ओैर ब्लॉगर महोदय दुम दबा कर पतली गली से निकल लिए।

       कई खाने वाले स्थलों से ऐसे स्वयंभू एंकर्स को मालिकों ने कुत्तों की तरह दौड़ाया है। कइयों की छित्तर परेड भी हुई है। कुत्ते का कुत्ता बैरी। दूसरे बलॉगर ऐसे ब्लॉगर्स की पिटाई वाली वीडियो चुस्कियां ले ले के कई सालों तक दिखाते रहते हैं। व्युअर्स के कमेंट औेर  मजेदार होते हैं। वे भी अपनी भड़ास निकाल लेते हैं।
     फिर इनका मन कुछ करारा खाने को करता है। ढूंढते ढूंढते इन्हें एक बूढ़ा व्यक्ति साईकिल पर एक छाबड़ी में कुछ रखे दिखा। उसकी आवाज से पता चला कि वह चना जोर गर्म की आवाजें लगा रहा है परंतु टोकरी पर एक प्ले कार्ड चिपकाया हुआ है। वहां चार-पांच ब्लॉगर मोबाइल ताने पहले ही बुजुर्ग को घेरा डाले खड़े हैं। ये श्रीमान जी तेजी से उसकी साइकिल की तरफ बढ़ते हैं। बोर्ड पढ़ते ही ये जनाब तीतर हो जाते हैं।
   बोर्ड पर लिखा था-पहले पैसे दें फिर चने खाएं, बाद में वीडियो बनाएं।


तारीख: 12.03.2024                                    मदन गुप्ता सपाटू









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