सियासत का बाजार

दुनियां में सियासत का एक बड़ा बाजार है। दुनियां का मानचित्र खोलिए और उसे गौर से देखिये। अगर दबा कुचला, छोटा-मोटा, पतला-दुबला कोई भी बफर स्टेट नजर आता हो तो समझ लीजिए की वहां भी सियासत का बाजार है। बड़े देशों की नजर ऐसे देशों के बाजार पर बराबर रहती है। उनदेशों के सियासत बाजार में कुछ भी उथल-पुथल मचता है तो बड़े देश बाजार को काबू करने के लिए अपने देश की मजबूत जाल को वहां फेंकने में तनिक भी देर नहीं करते। वे जानते हैं कि सियासत की जाल में कुछ न कुछ सियासी मछलियां फसेंगीं जरूर। 
सियासत के बाजार को चमकाने के लिए झूठ फरेब और झूठे आश्वासनों का सहारा लिया जाता है। गोदी मीडिया भी इसमें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसमें अपना सिर घुसा कर अपना उल्लू सीधा करता है। गोदी मीडिया भी सियासी बाजार स्थित तालाब में अपनी जाल फेेंककर तालाब को गंदा करने का काम करता है जिसे आम आदमी पसंद नहीं करता। कहा जा सकता है कि गोदी मीडिया सियासी बाजार में पहुंचकर घुन्न का काम करता है। 
सियासत के बाजार में नेता का प्रवेश हांड़-मांस के एक पुतले के रूप में होता है। जैसे-जैसे इस बाजार में उसकी मजबूत पकड़ होती जाती है वह हॉट केक की तरह बिकता जाता है। इसे कहते हैं सियासत की मार्केटिंग पॉलिसी। 
नेताओं की भी कई श्रेणियां होती हैं जैसे दरी बिछाने वाला नेता, चमचागिरी करने वाला नेता, गली-मुहल्ले का नेता, सांसद-विधायक के बाद देश विदेश का नेता। विदेश जाने के बाद नेता अंतरराष्ट्रीय सियासी बाजार का बड़ा खिलाड़ी माना जाता है। 
सियासत के बाजार में बने रहने लिए नेताओं को टैक्स के रूप में अपने दल के लिए फंड  एकत्रित करना पड़ता है। यहां तक की दल के लिए मेबर बनाने का भी काम करना पड़ता है। 
झूठे आश्वासन सियासी बाजार के बाई प्रोडक्ट हैं जिसे नेताओं के द्वारा धड़ल्ले से बेचा जाता है। इसके अलावा घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, रिश्वतखोरी, अपराध इत्यादि भी सियासी बाजार के बाई प्रोडक्ट हैं। 
सियासत के बाजार में कुर्सियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। कहा जा सकता है अगर कुर्सियां न हो तो इस बाजार का कोई महत्व नहीं रह जायेगा।
इस बाजार के खिलाड़ी जिस कद के होते हैं वे उसी कद के अनुसार कुर्सिंयां पाते हैं या पाने की लालसा रखते हैं। 
सियासी बाजार के सभी खिलाड़ी कहने को तो अलग-अलग कुनबे के होते हैं लेकिन सभी का चाल, चरित्र और चेहरा एक समान होता है। 
वर्षों से महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार सियासत के बाजार में मुंहबाये खड़ी हैं। इनका काम है हो हल्ला मचाना, धरना-प्रदर्शन कराना, लाठी-डंडे चलवाना, विभिन्न प्रकार के नारों से युक्त बैनर ढुलवाना। कहा जा सकता कि अगर यह सभी बीमारियां खत्म हो जायेंगी तो सियासी बाजार का कोई अस्तित्व नहीं रह जायेगा। 


तारीख: 13.03.2024                                    नवेन्दु उन्मेष









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