पेपरवेट


 

कुछ व्यक्ति अपने आप को हरफनमौला समझते हैं लेकिन वास्तव में होते अल्पज्ञानी हैं ।     और अक्सर ये अल्पज्ञान उनकी जग हंसाई का कारण बन जाता है । अंग्रेजी की एक कहावत “जैक ऑफ ऑल ट्रेड्स मास्टर आफ नन”, इनके लिए सटीक बैठती है। पर ऐसे व्यक्ति दिल के बड़े साफ और नियत के मनोरंजक होते हैं। यह अपने आप को सही साबित करने के लिए थोड़े गप्पी भी हो जाते हैं। ऐसा ही हैं मेरा प्रिय मित्र पुष्पेंद्र। 5 फुट 8 इंच का पुष्पेंद्र आकर्षक दिखता हैं, लेकिन उसकी हरकतों की वजह से लोग उसे पप्पू बुलाते हैं ।

रविवार के दिन मैं सिटी हॉस्पिटल के चौराहे पर खड़ा हुआ था की मैंने देखा पुष्पेंद्र पूरी गति से दौड़ा चला आ रहा हैं । मैंने उसे रोका और कहा “अरे भाई पुष्पेंद्र! कहां भागे चले जा रहे हो? क्या पुलिस पीछे पड़ी है?”

पुष्पेंद्र हांफते हुए रुका और बोला “पुलिस नहीं, दिनेश के गांव वाले मेरे पीछे लगे हुए हैं। देख, आ तो नहीं रहे?”

“कोई नहीं आ रहा तेरे पीछे, घबरा क्यों रहा है?  और ये दिनेश के चाचा तो हॉस्पिटल में भर्ती थे ना? तू क्या उन्हें देखने गया था?“

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“हां यार अनुराग! भलाई का जमाना ही नहीं रहा… दिनेश के चाचा को देखने गया था । बहुत भीड़ थी वहां, चाचाजी गांव के प्रधान जो ठहरे। गबरू पहलवान से लेकर मंझलू मोची, सब थे । और ये समझले की सब साले थूक लगाके मेरे ही पीछे पड़ गए” घबराया हुआ पुष्पेंद्र अभी भी हाँफ रहा था।

मैं तुरंत भाँप गया कि याड़ि जरूर कोई उल्टी-सीधी हरकत करके आया है। मैंने पूछा “तुमने कुछ कहा था क्या उन लोग को ?”

“अरे नहीं यार, सालों को फ्री में एक्सपर्ट राय दी, दवाई बताई । पर सच चाचा की हालत है बड़ी नाजुक । और तू तो जानता है, मैं सदैव सच बोलने वाला इंसान हूँ । सद रक्षणाय, खल निगृणाय “ 
मैंने बमुश्किल हंसी दबाते हुए हां में सर हिलाया ।
“तो मैंने उन्हें बता दिया, कि मेरे फूफा को भी यही बीमारी हुई थी, एड़िया घिस घिस कर मरे थे। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है । और उसी पल, जैसे मेरी बात को सच साबित करने के लिए, चाचा जोर से खाँसने लगा… लोगों ने पूछा " यह क्या! "। मैंने अपने अनुभव से बताया “जैसे लौ बुझने से पहले फड़फड़ाती है, वैसे ही चाचा फड़फड़ा रहा है, बस थोड़ी देर में निकलने वाला है… अब तू ही बता यार अनुराग मैंने क्या गलत कह दिया?”
पूरी कोशिश के बावजूद भी हंसी मेरे होंठो के कोनो पे आने लगी थी ।
“बस इतनी सी बात पर पता नहीं बुड्ढे को कैसे जोश आ गया। खांसी के बीच ही उठ बैठा और अपनी प्रधानी दिखाने लगा । बोला "यह कौन नामाकूल है जो मुझ जिंदे को मार रहा है । मारो साले को"। बस प्रधान का इतना कहना था कि सारे दीवाने लठ ले-लेकर मेरे पीछे हो लिए । सारे अस्पताल में हूं हल्ला मच गया। लेकिन मैं कहां आऊँ था उनकी पकड़ में। ऐसा रपटा की सबो के तेल लगे डंडे प्यासे रह गए । तुझे तो मालूम ही है, जब से ज्योतिषी ने बताया है कि मेरे ऊपर साढ़ेसाती चल रही है, तब से मैं रात में भी दौड़ने के जूते पहन कर सोऊँ हूं । “ 
पुष्पेंद्र ने ये बात पूरी भावनाओ के साथ कही, और फिर कुछ देर मेरी ओर देखने लगा। इधर इस पूरे घटनाक्रम की कल्पना कर-कर के मेरी हंसी नहीं रुक रही थी । मेरे हंसी के आंसुओं को नजरअंदाज करके वो बोला " यार अनुराग ये साढ़े-साती जल्दी ख़त्म हो…ये अच्छा समय आने में ज्योतिषी ने कितने साल बताए थे भला?” 
अब तक में अपना पेट पकड़-पकड़ कर हंस रहा था । कभी-कभी मुझे शक होता था की ये जान-बूझ के ऐसी बातें तो नहीं करता, दुसरे को हंसाने के लिए।  लेकिन एक नजर उसके गंभीर चेहरे को देखकर समझ आ जाता था, की ये सब सच में  हुआ है । 
“अब बस भी कर हंसने को, या हंसे ही जाएगा, ऐसा ना मैंने कोई जोक मारा है, अपनी आप बीती बता रया हूं। सहानुभूति करने से तो रहा, उल्टे हंसे जा रया है! बताना ज्योतिषी क्या कह रहा था?“ पुष्पेंद्र चिढ़ता हुआ बोला
मैने संभलते हुए कहा “अभी तो पूरे 3 साल है बच्चू…संभल कर चल हादसों से।“
“अरे कहां यार! रोज ही कोई ना कोई हादसा हो जाता है। अब कल की ही सुन, तुम्हारे घर के पास उस आदि-मानव घटोत्कच का घर है ना, वहां छोटे-छोटे बच्चो का एक समूह खड़ा था। घंटी बजाने की कोशिश में उछल रहे थे , पर उनका हाथ नहीं पहँच रहा था। मैंने उनकी सहायता करने के लिए बेल बजा दी । बच्चे तो सारे तितर-बितर  हो गए। बस मैं खड़ा रह गया घटोत्कच के सामने।  थोड़ी देर तो हमने एक दूसरे को कुत्तों की तरह घूरा,  फिर उससे पहले की उसका हाथ मेरे गिरेबान को छू पाता , तेरे भाई ने 100 मीटर की रेस लगा दी” पुष्पेंद्र गर्व से बोला ।
“अच्छा हुआ तूने रेस लगा दी, अगर घटोत्कच के हाथ पड़ जाता तो वह तुझे बहुत उधेड़ता… खैर ये छोड़, और सुना, क्या प्रोग्राम है आज का ? अगर कोई प्रोग्राम नहीं है तो क्या मोहित का भला करदें? बहुत दिनों से पीछे पड़ा हुआ है…”
“यार वह भी बड़ा खतरे से भरा काम है, अगर उन लोगों ने पहचान लिया तो पूरा मोहल्ला घी में डुबो डुबो के पेलेगा । सोच ले… और उसका दादा, या चाचा तो मैं हरगिज़ नहीं बनने वाला । साला प्यार वह करे और पीटें हम।“ पुष्पेंद्र बोला ।
“क्या बात कर रहे हो ? तुम्हें तो नाटक, एक्टिंग का शौक । एक्टिंग करते हुए क्या मंजे हुए कलाकार लगते हो। चलो दादा मत बनना, चाचा बन जाना। बस एक तू ही तो हरफनमौला है हमारे ग्रुप में” 
मैं पुष्पेंद्र को चढ़ा ही रहा था की मोहित भी वहां आ गया और आते ही ज़िद करनी शुरू कर दी “चलो ना तुम लोग, वरना फिर कब चलोगे? जब राखी दूसरे की हो जाएगी और मेरे हाथ में राखी बांध देगी तब ? आज का उन्होंने समय भी दिया है।“

अंत में हम तीनो चलने को तैयार हो गए । मैं मोहित का मित्र और पुष्पेंद्र उसका चाचा बनने को तैयार हुआ । मन ही मन मुझे राहत थी की अगर कुछ गड़बड़ हुई, तो मैं तो लड़के का दोस्त बनकर निकल लूंगा, पिटेगा तो लड़के का चाचा । रंगमंच के स्टूडियो में जाकर पुष्पेंद्र ने चाचा का मेकअप कराया । मेकअप करा कर जब वह स्टूडियो से बाहर निकला तो मोहित और मैं उसे देखते रह गए। पुष्पेंद्र 55 साल का अधेड़ लग रहा था। बाल आधे सफेद आधे काले थे । एक मंझे हुए कलाकार की तरह उसने अपनी चाल ढाल में भी बुढ़ापे का अंदाज घोल लिया था । 
राखी का परिवार मोदीनगर रहता था । गाजियाबाद से मोदीनगर 1 घंटे का रास्ता था । हम तीनों ट्रेन से मोदीनगर पहुंचे।
राखी के घर के लिए हमने कुछ मिठाई और चॉकलेट खरीदीं । मोहित थोड़ा झिझकते हुए बोला “प्लीज़ पप्पू, ज्यादा ऊंची ऊंची मत छोड़ना, कभी बात बनते बनते बिगड़ जाए।“ बात सच थी, पप्पू को ओवरएक्टिंग करने का बहुत शौक था। रामायण में एक बार धृतराष्ट्र का अभिनय करते-2 कहने लगा "संजय, हमारी नेत्र-ज्योति लौट आयी है। चलो हम कुरुक्षेत्र जाके पांडवो को अकेले ही हरा आते हैं ।" वो पहली और आखिरी बार उसे नाट्य समिति ने कोई रोल करने को दिया था ।

“चुप बे! चाचा से जबान चलाता है, चल कान पकड़” पुष्पेंद्र ने मोहित को डांटते हुए कहा।
“साला अपने को सच मे चाचा समझ रहा है । मुझे पक्का शक है ये खेल बिगाड़ेगा।“ मोहित मेरे कान में बोला।
“घबरा मत। सब ठीक होगा । तू चुपचाप बैठना और अगर पुष्पेंद्र कहीं ज्यादा बोले, तो मुझे इशारा कर देना। मैं उसके साथ ही बैठुगा, और हाथ दबा कर उसे रोकता रहूंगा ।“

राखी की मम्मी, चाची, चाची के दो बच्चे, राखी की छोटी बहन और भाई ड्राइंग रूम में आकर बैठ गए । भरा पूरा परिवार लग रहा था । पुष्पेंद्र कुछ देर उन्हें निहारता रहा, जैसे बड़े लोग छोटो को निहारते हैं, लेकिन बार-2 नजरे रपटाके राखी की बहन को देखे जा रहा था । फिर बोला “अच्छा भरा-पूरा परिवार है आपका , मोहित तो इकलौता बेटा है” 
“अम्म, बस मेरी एक छोटी बहन है । पर बेटा तो इकलौता ही हूँ ।” मोहित ने बात संभालते हुए कहा।
पुष्पेंद्र तुरंत मोहित के कान में धीरे से बोला “तुम्हारी बहन भी है, कभी हमें बताया नहीं ।“
“चुप चाचा!”

राखी की मां ने पूछा “यह बताइए की मोहित करता क्या है और उसकी आमदनी कितनी  है?”
“देखिये बहनजी, उह्हू उह्हू!” नकली खांसी मारते हुए पप्पू बोला “लड़के का टीवी फ्रिज और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक सामान का गाजियाबाद में बड़ा सा शोरूम है । 50 लाख के करीब (मोहित ने तुरंत इशारा किया ) का सामान हर महीने शॉप में आता है और बिक जाता है ।“  मैंने धीरे से पुष्पेंद्र का हाथ दबाया, पुष्पेंद्र ने मुझे घूरते हुए कहा “मोहित को तो केवल 10 लाख ही बचता है।“
राखी की मां ने आश्चर्य करते हुए पूछा “अच्छा 10 लाख की आमदनी हो जाती है।“
इससे पहले कि चाचा जवाब देते, मोहित उसे काटते हुए बोला “बस आंटी, जी एस टी, इनकम-टैक्स और दूसरे टैक्स काट के दो लाख के करीब बचते हैं।“
"हाए! इतना टैक्स ?!" भावी सासु माँ सोच में पढ़ गयी ।

“उह्हू उह्हू” । निहायत ही नकली खांसी लेते हुए पप्पू फिर बोला “अच्छा समधन जी, समधी जी हमें बुला कर कहां चले गए? वह आ जाते तो पूरी बात हो जाती”
“अभी से कहां समधी समधन के गाने गा रहा है साले। और ये नकली खांसी लेना बंद कर, तेरी नकली मूछों के साथ निकल जाएंगी” मैंने पप्पू का हाथ जोर से दबाते हुए कहा 

“उनके एक मित्र का फोन आया था, कह कर गए हैं थोड़ी देर में आ जाऊंगा । जब तक आप लोग चाय नाश्ता करेंगे तब तक तो आ ही जाएंगे । आप लोगों को हमारी आर्थिक स्थिति का तो पता ही है ।आपकी कोई विशेष मांग तो नहीं है ?“

“मांग का तो यह है आंटी, सॉरी बहन जी, की लग्जरी गाड़ी ,एयर कंडीशन , फ्रिज , टीवी, 25 लाख नकद…” यह सुनकर ड्राइंग रूम में सन्नाटा छा गया । सब एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। मैंने अपनी पूरी ताकत से पप्पू का हाथ दबाते हुए कहा “अबे गधे! रिश्ता करवाने आया है या तुड़वाने ।“ 
“चुपचाप बैठ कर तमाशा देख ,जहां तुम लोग सोचना बंद कर देते हो वहां से तुम्हारा चाचा सोचना शुरू करता है” चाचा ने मुझको हल्की सी चपत लगाते हुए धीरे से कहा
“हां तो मैं आप लोगों को मांग के बारे में बता रहा था, इन चीजों को देने वाले तो कई रिश्ते आए लेकिन हमें लग्जरी गाड़ी, एयर कंडीशन नकद यह सब चीजें चाहिए ही नहीं । हमें तो टू पीस में ऐसी लड़की " मैंने बीच में टोकते हुए कान में कहा “क्या अनाप-शनाप बक रहे हो । टू पीस का मतलब समझते भी हो?“ 
चाचा बोले "तुम लोग चुप रहो … हां तो बिकिनी जी, मेरा मतलब समधन जी, हमे टू पीस वाली लड़की भी नहीं चाहिए, हमें तो सभ्यता में पली एक संस्कारी लड़की चाहिए जैसी हमारी राखी है । अब बहन जी विलंब न करिए, राखी को बुला लीजिए और बढ़िया सा नाश्ता मंगवा लीजिए।“

नाश्ता लाने के लिए जैसे ही वह लोग उठ कर गए, मोहित और मैं पुष्पेंद्र पर चढ़ बैठे “साले भुक्कड़ तू सारी हरकतें पीटने वाली कर रहा है। अगर इन लोगों से बच् भी गया तो हम तो तुझे निश्चित मारेंगे।“
पुष्पेंद्र उठ कर जाने लगा “ठीक है तो मैं जा रहा हूं । सालों का रिश्ता भी कराऊं और पीटू भी, वाह भाई वाह।“
हमने तुरंत हाथ जोड़ लिए “माफ कर दे यार गलती हो गई हमसे। तू नहीं तो हमारा क्या होगा ? बैठजा मेरे चीते, बैठजा।“
पुष्पेंद्र तड़ी के साथ बोला “ठीक है, ठीक है, आइंदा  मत करना । बैठो तुम लोग। याद रखना, दिलवाले हैं, दुल्हनिया तो ले ही जाएंगे ।“

कुछ देर में राखी की मां और चाची, राखी के साथ नाश्ता लेकर आ गई । चाची राखी को अपने पास बैठाने लगी ।
पुष्पेंद्र ने कहा “अरे वहां नहीं, बिटिया हमारे पास बैठेगी” और फिर मोहित से कहा “उठ जाओ जाकर सामने बैठो।“
"पर चाचा जी.." मोहित गुस्से में बोला । 
"चाचा से जबान लड़ता है ।" चाचा ने मोहित के कान पकड़ते हुए कहा। मोहित ने अपना कान मलते हुए आज्ञा का पालन किया ।
चाचा बना पुष्पेंद्र मौके का पूरा फायदा उठा रहा था । राखी की कमर पर हाथ फेरता हुआ बोला “हां तो बेटा, कहां तक पढ़े हो।“
“जी मैंने एमसीए किया है, और मैं गाजियाबाद की एक कंपनी में काम करती हूं । मोदीनगर से गाजियाबाद रोज आती जाती हूं।“
“अच्छा, तो वहीं इस गधे से भेंट हुई होगी तुम्हारी ?” राखी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए पुष्पेंद्र ने कहा। “अरे बहन जी, आपने तो कुछ खाया ही नहीं, आप भी लीजिये, आप ही का घर है " पप्पू हँसते हुए बोल। " और डाइट कोक नहीं है? असल में हम डाइटिंग कर रहे हैं, इसीलिए इतने फिट हैं। उम्र सत्तर की है, लेकिन शरीर सत्ताईस साल दो महीने का । उह्हू उह्हू " 
“ये बेवकूफ उन्हें अपनी असली उम्र बता रहा है !“ मैंने मन ही मन सोचा ।

मोहित बुरी तरह से जल भुन कर राख हो रहा था।लेकिन दांत भींचता रह गया।

थोड़ी देर में चाचा अच्छे से नाश्ता करने के बाद डाइट कोक का सिप लेते हुए बोला “बहन जी हमें तो आपकी लड़की पसंद है । अब आप लोग देख लीजिए मेरा ख्याल है, अंकल आ जाएं तो छोटी मोटी रस्म कर ली जाए।“
राखी की माँ बोली “अंकल कौन?”
“मेरा मतलब है बच्चों के अंकल हमारे तो समधी हुए ना? इसी जाड़े में दोनों की कोर्ट मैरिज करा दीजिए, पापा तो मोहित के हैं नहीं, आंटी, मेरा मतलब इसकी मम्मी, मेरी भाभी बीमार रहती हैं। मोहित के कुछ रिश्तेदार कुछ आप लोगों के सम्बन्धी कोर्ट जाकर विवाह करा दें । बाद में किसी शानदार होटल मे पार्टी हो जाए, क्यों क्या कहती हैं?”
“भाई साहब हमें तो बड़ी प्रसन्नता होगी, अब आप लोग के ऊपर है । जैसा आप लोग कहेंगे हम तो वैसा ही करने को तैयार हैं” मां ने प्रसन्न होते हुए कहा।
“देखिए बहन जी मैं तो कल ही यूरोप टूर पर निकल जाऊंगा। वहां के प्रधान-मंत्री ने बुलाया है। उनकी बिटिया की शादी है, फिर एक-डेढ़ साल बाद आऊंगा, कन्यादान वगैहरा कराकर। इसलिए मैं तो शादी में उपस्थित हो नहीं पाऊंगा… लेकिन हां मेरा बेटा पुष्पेंद्र, जो बड़ा ही काबिल, होनहार, और शक्तिशाली लड़का है… उसकी जितनी तारीफ करो कम है… उह्हू उह्हू, वह मेरी कमी पूरी कर देगा । वैसे भी हम दोनों एक जगह जाते नहीं है। अब देखिए ना सारी दुनिया में मेरा व्यापार फैला हुआ है। यूरोप कभी आस्ट्रेलिया तो कभी यूएस।  2 साल के बाद आया हूं फॉरेन ट्रिप से,:क्यों बच्चों सही कह रहा हूं ना मैं ?” पुष्पेंद्र शेखी मारते हुआ बोला।
“आंटी सही कह रहे हैं चाचा, इस बार जाएंगे तो शायद वापस लौट कर आएग ही नहीं … इनकी बड़ी मांग है विदेश में। प्रेसिडेंट से लेकर पुलिस तक, सब इन्हे ही ढूंढ रहे है। अभी पिसा की मीनार सीधा करने का काम चाचाजी के कमजोर कंधो पे ही है । कभी -कभी तो लगता है की चार कंधे देने का समय आ गया है चाचाजी को। “ मोहित ने व्यंग करते हुए कहा।
"बड़ा मजाकिया है भतीजा" पप्पू ने मोहित के गाल पर प्यार से चपत मारते हुए कहा ।

थोड़ी देर में राखी के पापा भी आ गए और हमे विदा करते समय शगुन के रूप में मेरा 5,001, चाचा का 11,001 और मोहित का 21,001 से टीका किया। मोहित ने भी एक सोने की अंगूठी राखी को पहना दी।

बाहर निकल के पुष्पेंद्र ने कहा “यार यह बड़ा अच्छा धंधा है, नाश्ता भी करो, हाथ भी फेरो और 11,001/- से टीका भी करवाओ। चलो अब किस लड़की को देखने चलना है।“
बेटा अब किसी लड़की को देखने नहीं चलना, अब बस तुझे पिटना है । पता नहीं तुझे क्या मजा आता है। वहां पर तू क्या अनाप-शनाप बोल रहा था, कभी गाजियाबाद से भी बाहर निकला है तू, और मोहित के माल पर हाथ क्यों फेर रहा था ? और कौन सा विदेश जा रहा है?”
“अरे बेवकूफ हो तुम लोग, यह सब तो मैं वास्तविकता बाहर निकलने के लिए कह रहा था। समझो, अगर विदेश जाने की बात ना कहता, तो शादी में क्या यह लोग मुझे नहीं ढूंढते ? फिर कहां से चाचा और पुष्पेंद्र दोनों साथ में आते? और रही हाथ फेरने की बात, ये तो बड़ो का प्यार और आशीर्वाद है। तू जानता है, ये चाचा लोग बड़े ठरकी होते हैं। वैसे, एक किस्सा सुनाऊ? “
“बस हमे माफ़ कर। समझ गए अकलमंद, अब जाकर टिकट ले ले, 11000 का टीका हुआ है तुम्हारा।“
“बेटा भूल जाओ उन ₹11,000 को, वह तो मेरी फीस है। अब क्या तुम्हारा चाचा लगेगा लाइन में ? जाओ टिकट लो तुम दोनों, मैं वॉशरूम में जाकर चाचा का मेकअप खत्म करके आता हूं । हो सकता है ट्रेन में मेरे लिए भी कोई राखी इंतजार कर रही हो “ पुष्पेंद्र यह कहकर वॉशरूम में घुस गया।
मैंने मोहित से कहा “बहुत बदमाश है चाचा ।“
हम बात कर ही रहे थे, की तब ही मोहित के चेहरे की हवा गुल हो गयी। उसी पल मेरे कंधे पर किसी ने हाथ रखा, मैं पलटा तो पीछे राखी के पापा खड़े थे। 
"अरे शुक्र है आप लोग मिल गए। आपके चाचा अपना ये झोला हमारे घर में भूल आये थे। " राखी के पिताजी पसीना पोंछते हुए बोले। "कहा हैं समधी जी, एक बार उनसे भी विदा लेलूं " 
"हम्म, अंकल आपने ये झोला खोला तो नहीं ना?" मैंने झिझकते हुए पूछा । मेरे और मोहित के चेहरे पे एक जैसी घबराहट थी। हम जानते थे की पप्पू अपने झोले में सिगरेट के साथ साथ गन्दी किताबे भी रखता है।  
“नहीं नहीं बेटा " राखी के पापा को शायद बुरा लग गया था।  
"नहीं अंकल बुरा मत मानिएग। वो, चाचाजी थोड़े नवाबी मिजाज के हैं। वैसे आपका बहुत बहुत शुक्रिया अंकल । "
"हां तो बेटा कहा है चाचा जी?"
"वो अंकल वो…" मैं और मोहित सोच ही रहे थे की क्या बोले तभी पीछे से आवाज़ आयी 
"ये साली मूछ उतर ही नहीं रही थी।  बड़ी मुश्किल से निकाला बे । अगली बार तुम चाचा बनना । " हमेशा की तरह पप्पू अपनी धुन में चला आ रहा था ।
"आ" राखी के पापा को देखकर अनायास ही पप्पू की चीख निकल गयी । एक पल समझ नहीं पाया क्या करे।  
"उह्हू उह्हू । समधी जी आप?" पप्पू अपने करैक्टर में आ रहा था । वो भूल गया था की उसने चाचाजी का मेकअप उतार दिया है । 
"जी आप कौन? " राखी के पिताजी को शक हो रहा था । 
"अरे मुझे नहीं पहचाना? अभी तो मिले थे।  मैं…" इससे पहले पप्पू अपना भांडा खुद ही फोड़ता, मोहित कूद कर बोला " पापा जी ये पुष्पेंद्र, चाचाजी का बेटा । चाचाजी को हमने पिछली वाली ट्रेन में बिठाके विदा कर दिया है ।  वो थोड़ा नवाबी मिजाज के है, अकेला ट्रेवल करना पसंद करते हैं " 
पप्पू बोल पड़ा, " हाँ हाँ, चाचाजी (तभी मैंने लात मारी), मेरा मतलब मेरे पापा, बिना ए सी, बिना आरक्षण के सफर नहीं करते ! ऐसे ही रईस हैं मेरे पापा ।"
"पर आप मुझे समधी क्यों बुला रहे हैं, और ये मूछों का क्या माजरा है, और ये क्या कह रहे थे की "अगली बार तुम चाचा बनना ?""
एक पल हम सब सोच में पढ़ गए, लगा की आज तो भांडा फूटा। मुझे तो जेल की चारदीवारी नजर आ रही थी।  
"अरे पापा," मोहित फिर बोला " ये पुष्पेंद्र मेरे बराबर उम्र का ही है, लेकिन खुद को मेरा बड़ा भाई समझता है, वैसे ही स्नेह रखता है, इसीलिए आपको समधी जी बुला रहा है "
"अच्छा, वैसे देखने में तो पुष्पेंद्र जी तुमसे काम से कम 10-15 साल बड़े लगते हैं " राखी के पिताजी पुष्पेंद्र को घूरते हुए मोहित से बोले । 
"अंकल, वैसे मुझसे ज्यादा गबरू तो पूरे उत्तर प्रदेश में ना है, तीन बार मिस्टर मेरठ जीत चूका हूँ" पप्पू अपनी गिरती इज्जत को सम्हालने के लिए बोला । 
"अच्छा और ये जो पुष्पेंद्र जी कह रहे थे की मूंछ उतर नहीं रही, इसका क्या माजरा है? और इन्होने अभी ऐसा क्यों कहा की "अगली बार तुम चाचा बनना” ?” राखी के पिता संदेह करते हुए बोले ।
"अंकल असल में पुष्पेंद्र एक्टिंग करता है, और अभी एक नाटक में इसने धृतराष्ट्र की भूमिका निभाई थी, तो धृतराष्ट्र पांडवो के चाचा थे ना और उनकी मुछे भी थी " अबकी मैंने कहा । 
"ओह, तो नौटंकी करते हैं पुष्पेंद्र जी " राखी के पिताजी बोले ।
"बिलकुल सही समझे अंकल आप" मोहित भावी ससुर की हाँ में हाँ मिलते हुए बोला ।

किसी तरह से हमने राखी के पिता को टाला और जाकर ट्रेन में बैठने को चले।   
"यार साला खामखा बेइजत्ती करवा दी। मैं अभी अपने पापा, मतलब तुम्हारे चाचा से कहके इस राखी के बाप को ठिकाने लगवा दूंगा " पप्पू अपने हाथ मसलते हुए बोला। मेरा और मोहित का बुरा हाल, समझ नहीं आ रहा था हँसे की रोये ।

ट्रेन में हमने देखा कुछ लड़के दो लड़कियों को छेड़ रहे थे । लड़कियों ने वहां से जाना चाहा तो लड़कों ने सामने की सीट पर पैर फैला कर रास्ता रोक दिया और गाना गाने लगे "रुक जाना ओ जाना हमसे दो बातें करके चली जाना यह मौसम है दीवाना"।
पुष्पेंद्र ने कहा “यार मां बदौलत के होते हुए इनकी हिम्मत कैसे पड़ रही है लड़कियां छेड़ने की? आज हमारे पासे सही पड़ रहे हैं क्यों न इन्हें भी सबक सिखाया जाए । “
“इन चक्करों में मत पड़ । पता नहीं कितने हो गिनती में और भारी पड़ जाए हम पर । वैसे भी हम मारधाड़ करने थोड़ी ही आए हैं” मोहित ने कहा।
“अरे यार हम तो गांधी के पुजारी हैं । मारधाड़ से तो बहुत दूर रहते हैं। बस वही फार्मूला अपनाते हैं जिससे कई बार सफलता मिल चुकी है।“ पुष्पेंद्र ने कहा।
“ठीक है हम चलते हैं तू 5 मिनट बाद आना ।“ 
मोहित और मैं लड़कों के सामने बैठ गए और भूमिका बांधनी शुरू कर दी। मैने मोहित से कहा “तुझे मालूम है मुंबई का बिल्लू बदमाश भी इसी ट्रेन में सफर कर रहा है।“
“तुझे कैसे पता ? क्या तूने ट्रेन में चढ़ते हुए देखा है ?” मोहित ने पूछा।
“अरे तो क्या ऐसे ही कह रहा हूं ? आज जरूर ट्रेन में कोई बड़ा हादसा होगा या मारधाड़ होगी” मैंने कहा।
“अरे साला ! इधर ही आ रहा है” मोहित ने झांकते हुए कहा।
सामने बैठे हुए लड़के भी थोड़ा डर गए । पूछा “कौन है भाई साहब? कौन आ रहा है ?”
मोहित ने उन्हें डराते हुए कहा “अरे तुम्हें नहीं मालूम अभी पिछले संडे को जो डबल मर्डर हुआ था उसमें बिल्लू का हाथ था । साला है बड़ा खतरनाक और पुलिस के भी हाथ नहीं आता।“
पुष्पेंद्र ने थोड़ा मेकअप कर लिया था, बाल बिखेर लिए थे, कालर ऊपर चढ़ाकर ऊपर का एक बटन खोल रखा था और गले में रुमाल बांध रखा था । पूरा टपोरी लग रहा था । हमें देख कर बोला “ए साला चिकना लोग तुम इधर भी मिल गया । अभी अपुन को कंप्लेंट आया है कि इधर  कुछ लड़का लोग लड़कियों को छेड़ रहा है,  तुम छेड़ा क्या?और कौन गा रहेला था "रुक जाना ओ जाना?”
“नहीं भाई हम लोग तो अभी आके बैठे हैं ।“ सामने वाले लड़कों की तरफ इशारा करते हुए कहा “यह लोग पहले से बैठे हैं , इन्होंने कुछ किया हो तो हमें पता नहीं।“
“अपुन का हिस्ट्री इन लड़का लोगों को बता दो नहीं तो अपुन इनका जोग्राफी बिगाड़ डालेगा।“
“ठीक है भाई बताता है अभी।“ फिर हमने उन लड़कों से कहा “तुम्हारी खैरियत इसी में है कि तुम लोग यहां से रफूचक्कर हो जाओ” 
उधर पुष्पेंद्र ने जेब में ऐसे हाथ डाला जैसे पिस्तौल या कोई अन्य हथियार निकाल रहा है और वाकई वह लड़के इतना डर गए थे ,तुरंत उठ कर तेजी से भाग गए।
लड़कियां भी उठकर जाने लगी तो मैंने हंसते हुए कहा “अरे तुम लोग कहां जा रही हो, तुम लोगो के लिए ही तो इतना ड्रामा किया है। यह कोई गुंडा मवाली नहीं, हमारा मित्र है।“
पुष्पेंद्र ने जेब में से हाथ निकाला उसके हाथ में ढेर सारे काजू बदाम थे । उसने हम लोग के सामने हाथ करते हुए कहा “लो खाओ,  मोहित के ससुराल का माल है।“
मैंने कहा “लज्जा नहीं आई, मोहित की ससुराल में चोरी करते हुए?”
वह अपने अंदाज में कालर और बाल ठीक करता हुआ बोला “जिसने की शर्म उसके फूटे करम”
“वाह क्या फिलॉसफी है” मोहित ने व्यंग करते हुए कहा।


हमारी मुलाकातें और शरारते ऐसे ही चलती रही। समय बीतता गया। ग्रुप के सब दोस्त कहीं ना कहीं नौकरी में लग गए । मुझे भी एक मल्टीनेशनल कंपनी में एग्जीक्यूटिव की नौकरी मिल गई। एक संडे मुझे पुष्पेंद्र मिला । मैंने पहली बार उसके चेहरे पर मायूसी देखी। मैंने उससे कहा “क्या बात है मित्र ? मैंने तोआज तक तुम्हें हमेशा हंसते हुए देखा है । क्या बात है आज पहली बार तुम्हारा मायूस चेहरा देख रहा हूं? क्या हुआ है जो मेरा यार दुखी है?”

पहले तो पुष्पेंद्र टालता रहा लेकिन फिर जब मैंने कहा अपनी खुशियां हमसे शेयर करते हो गम नहीं बांटना चाहते।
“ऐसी कोई बात नहीं है अनुराग, बस थोड़ी अपने आप से शिकायत है । ग्रुप के सभी दोस्तों की अच्छी नौकरी लग गई। बस मैं तन्हा रह गया, यह सोच के थोड़ा दुख होता है कि मैं अच्छे से क्यों नहीं पढ़ा। क्यों मैं वेला ही रह गया?” ऐसा लग रहा था जैसे पुष्पेंद्र के शब्द गम में डूबे हुए है और दूर से आ रहे हैं।
मैंने तुरंत पुष्पेंद्र को गले लगाते हुए कहा “ऐसा कभी मत सोचना, तुम्हारी हम सब से अच्छी जॉब लगेगी। अभी वक्त नहीं आया है। भगवान के यहां देर है अंधेर नहीं है।  वह सबको मौका देता है, बस हमें उन्हें सही से कैच करना होता है। चल आजा अपनी पुरानी दुकान  पर चलते हैं बैठकर सेलिब्रेट करेंगे।“
उस दिन मैं पुष्पेंद्र के साथ काफी देर तक रहा, ताकि उसका मन बहल जाए ।जाते समय मैंने उससे कहा “देख लेना तुझे बड़ी जल्दी गुड न्यूज़ मिलेगी।“


एक महीने बाद पुष्पेंद्र मेरे घर उसी पुराने अंदाज में आया और हंसता हुआ कहने लगा “तू सही कह रहा था। शायद भगवान ने मौका दिया है। परसों मेरा सिटी बैंक में साक्षात्कार है, वह भी मैनेजर की पोस्ट के लिए । देखो, तैयारी तो पूरी कर ली है, देखते हैं क्या होता है।“
“सब अच्छा ही होगा मेरे दोस्त । अच्छे दिल वालों के साथ हमेशा अच्छा ही होता है और तेरा दिलतो सोने का है।“
अगले दिन पुष्पेंद्र सिटीबैंक इंटरव्यू के लिए गया। इंटरव्यू ज्यादा अच्छा नहीं हुआ । उसने सोचा निराशा ही मिलेगी। वह अपना सामान वही एक टेबल पर रख कर वॉशरूम चला गया ।
वॉशरूम में उसे अजीब सा शोर सुनाई दिया। फिर एक गोली चलने की आवाज सुनाई दी। पुष्पेंद्र बाहर आया तो उसने एक अलग ही मंजर देखा । 4-5 नकाबपोश गनमैन ने बैंक के कर्मचारियों को कब्जे में कर रखा हैं। एक नकाबपोश ने एक 3 वर्ष के बच्चे को उठा रखा था और उसके गले पर चाकू लगा रखा था। उसकी मां बेबसी में खड़ी रो रही थी और लोगों से कह रही थी "कोई तो बचाओ"। बैंक  का पूरा स्टाफ सदमे में था। बैंक का गार्ड नीचे घायल पड़ा था। 
पुष्पेंद्र तुरंत झुक गया ताकि वो लोग उसको देख ना सके । अचानक उसने देखा उसके सामने 7 मीटर की दूरी पर फायर सेफ्टी अलार्म लगा हुआ था। मेज पर 2-4 पेपरवेट रखे हुए थे। उसे अचानक कुछ याद आया जिससे उसकी आत्मा दृढ़ संकल्प से भर गयी । उसने पेपरवेट अपने हाथ में उठा लिया और भगवान का स्मरण किया। फिर जैसे भगवान ने ही उसे शक्ति दी, उसने घुमा कर फायर अलार्म के शीशे पर पेपरवेट फेंक के मारा। जब ईश्वर किसी की मदद करता है तो वह उसको मझधार मे नहीं छोड़ता । पेपर वेट जोर से फायर अलार्म पर जाकर लगा । शीशा खंन- खन की आवाज करके टूट गया और पूरी तेजी से  फायर अलार्म बज उठा ।
बैंक में डकैती डालने आए गनमैन इस अप्रत्याशित घटना के लिए तैयार नहीं थे । भीड़ बड़ी तेजी से सिटी बैंक के सामने इकटठा होने लगी। फायर अलार्म का एक कनेक्शन पास की पुलिस चौकी में भी था । पुलिस भी तुरंत एक्शन में आ गई । डकैतों के हाथ-पैर फूल गए।  पुष्पेंद्र ने दूसरा पेपर वेट भी हाथ में लिया और भगवान से कहा “हे भगवान, ये और निशाने पर लगा दे।“ उसने तेजी से पेपर वेट का निशाना उस बदमाश को लगाया जो बच्चे को चाकू की नोक पर आतंकित कर रहा था। इस बार भी निशाना बिल्कुल सही ठिकाने पर लगा । बदमाश के सिर में इतनी जोर से पेपरवेट  लगा कि वह एकदम चक्कर काट के सोफे पर गिर गया। पुष्पेंद्र तेजी से भागा और उसने बच्चे को गोदी में ले लिया । दूसरी ओर  बदमाशों मे भगदड़ मच गई।  बदमाश बंदूकों से फायर करते और उन्हें  हवा में लहराते हुए बाहर को भागे । दो बदमाश भागने में कामयाब हो गए लेकिन बाकि के तीन मे से दो को भीड़ ने धरदबोचा और एक अंदर सोफे पर जख़्मी पड़ा था।
आनन-फानन में कई टीवी न्यूज़ चैनल वाले सिटीबैंक पहुंच गए। पुष्पेंद्र से चैनल वाले तरह-तरह के सवाल पूछने लगे । इत्तेफाक से मैंने भी उसी समय टीवी खोला था । अपने मित्र पुष्पेंद्र को टीवी पर लाइव देख कर मुझे खुशी एवं आश्चर्य दोनों हुआ । जब उसका कारनामा सुना तो मेरा दिल झूम उठा और सीना 56 इंच का हो गया। मैंने दौड़ते भागते कपड़े पहने और सिटी बैंक की तरफ बाइक घुमा दी। बैंक वाले भी पुष्पेंद्र की बहादुरी की भूरी भूरी प्रशंसा करने लगे।  बच्चे की मां ने कहा “आप हमारे लिए भगवान बन कर आए है। आपने मेरे बच्चे को बचा लिया।“ पुष्पेंद्र को तो कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि वह क्या कहे। कल तक भीड़ में खोया हुआ एक चेहरा आज फर्श से अर्श पर आ गया था। अचानक ही इतनी भीड़ का हीरो बन गया था । बैंक के एक कर्मचारी ने पुष्पेंद्र  से कहा “आप जाने से पहले जी एम साहब से मिलकर जाइएगा।“ मुझे देखते ही पुष्पेंद्र बड़ा प्रसन्न  नजर आया मुझसे कहने लगा “अच्छा हुआ यार तू आ गया, मेरा तो दिमाग काम नहीं कर रहा है। अचानक क्या हो गया मेरी जीवन में।“
मैंने धीरे से पुष्पेंद्र से कहा “तेरे सपने सच होने का समय आ गया है ,:पुष्पेंद्र। जगा अपने भीतर के विश्वास को, अब तू आम आदमी नहीं रहा, तू एक हीरो है ।”
मैंने पुष्पेंद्र का आत्मविश्वास पूरी तरह से जगा  दिया था । न्यूज़ चैनल्स के कई सारे माइक पुष्पेंद्र  के आगे लगे हुए थे पुष्पेंद्र ने कहा “मैंने कोई महान काम नहीं किया है , बस जो हिम्मत और जोश मेरे मित्र अनुराग ने मुझे दिया यह उसी का परिणाम है ।उसका ऐसा मानना है , "भगवान अपने आप को साबित करने का अवसर हर किसी को  देता है बस हमें तो उसका अपनी हिम्मत और जोश के साथ सदुपयोग करना होता है"  मैंने अपनी जिंदगी की परवाह किए बिना भगवान पर विश्वास करके अपने कर्तव्य का पालन किया और मुझे उस में सफलता मिली।“ फिर हंसते हुए कहा “इस सफलता में काफी हाथ उन दो पेपर  वेट का भी है जो अर्जुन के तीर की तरह सही समय और सही निशाने पर लगे।“
अगले दिन सेंट्रल बैंक डकैती की न्यूज़ पुष्पेंद्र की फोटो के साथ हर न्यूज़पेपर में प्रमुखता से छपी। मेरा मित्र हीरो बन गया था और उसे सिटी बैंक में मैनेजर का पद भी मिल गया। पुष्पेंद्र वह दोनों पेपर वेट्स अपने साथ ले आया और उन्हें अपने ड्राइंग रूम में प्रमुखता से स्थान दिया।

इस हादसे के कुछ रोज बाद मैं, पप्पू और मोहित, अन्य मित्रों के साथ अपनी पुरानी चाय की दूकान पर बैठकर बातचीत कर रहे थे। चर्चा का विषय हर बार की तरह पप्पू ही था, जो एक क्षेत्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित होने और प्रतिष्ठित नौकरी मिलने के बावजूद भी वही पुराने उत्साह से बात कर रहा था।
पप्पू उस दिन का हादसा याद करता हुआ बोला "यार क्या बताऊँ।  वो तो उसने बच्चे का टेंटुआ दबाया हुआ था, वरना ऐसा मारता सालों को की दुसरे के तो क्या, कभी अपना पैसा निकालने के लिए भी बैंक जाने की हिम्मत नहीं करते । ऐसे बदमाशों के लिए तो माँ बदौलत के हाथ ही काफी हैं ।"
सब मित्र हंस रहे थे। सबको ख़ुशी थी की पप्पू बदला नहीं, बल्कि वही पुराना फेंकू इंसान है । 
मोहित बोला "यार पप्पू कुछ भी कहो, एक बात तो माननी पड़ेगी, तेरा निशाना गजब है।  मतलब एक अर्जुन हुआ, एक अभिनव बिंद्रा हुआ, और अब तू ।"
"अरे कुछ नहीं, ये तो मेरे बाए हाथ का खेल है । ये भुजा देखी है?" पप्पू अपना बाया हाथ दिखते हुए बोला "इसी हाथ से तो फेंका वो पेपरवेइट मैंने"
"नहीं यार सच बता, अर्जुन को तो मछली की आँख दिखती थी, तुझे क्या दिखा था, जब तू वो पेपरवेइट फेंक रहा था?" मोहित जोर देते हुए बोला।  
"यार दिखा तो कुछ भी नहीं था, असल में पेपरवेइट फेंकते हुए मैंने अपनी आँखे भींच रखी थी। " पप्पू मासूम अंदाज में बोला । 
अब समझ में आया की पुष्पेंद्र का यह कारनामा भी उसके पिछले कारनामो जैसा ही था। एक इंच से भी अगर पेपरवेइट का निशाना चूक जाता, तो नजाने क्या हो जाता…
 


तारीख: 14.02.2024                                    विजय हरित









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