वसीयत

मित्तल साहब को भगवान ने ऐसे समय अपने पास बुला लिया जब बहादुर शाह ज़फर की गज़ल- दो गज़ जमीं भी न मिली कूए-ए- यार में केवल इतिहास में ही सुनी जाती थी परंतु 2021 का ऐसा वक्त भी आया कि कितने बदनसीबों को न तो  दो गज जमीन ही मिल  पाई और न चार कंधे नसीब हो पाए। हालांकि मित्तल साहब बहुत सोशल थे और सोशियोलॉजी के प्रोफेसर थे, सबके मरने जीने में सबसे पहले पहंुचते थे। शोक सभा में सब को वेदों, पुराणांे ,गीता आदि के श्लोक आदि  उद्धत करके सांत्वना देते थे। परंतु वे ऐसे समय गए जब आसपास के दो चार लोग ही अंतिम यात्रा में जा सकते थे।
                 बड़ा बेटा राकेश कैनेडा में था। दूसरा सुरेश आस्ट्र्ेलिया और बेटी सुनीता यू .के में। व्हाट्स एप पर शर्मा जी ने सब को मैसेज दे दिया था। परिस्थितियां ऐसी बनीं कि अंतिम संस्कार पर कोई ब्लड रिलेशन पहुंच नहीं पाया और स्थानीय रिश्तेदार भी सरकारी गाईड लाईन के कारण एकत्रित नहीं हो सके।
                परंपरानुसार पंडित जी ने शर्मा जी से मिल कर  मित्तल साहब की तेरहवीं की डेट फिक्स कर दी और बच्चे अलग अलग देशों से एक ही दिन चंडीगढ़ पहुंच गए। घर पर ही छोटी सी पूजा और हवन रखा गया जिसे जूम मीट पर कोड देकर मिलने वालों को 40 मिनट के लिए र्व्चुअल शोक सभा में शामिल कर लिया गया। उसमें भी मुश्किल से चार पांच लोग ही बस नजर आए जो अपने ही घर में इधर उधर ही देख रहे थे। श्रद्धांजलि क नाम पर बस हाथ जोड़ के आउट हो गए।
        शाम के समय तीनों बच्चे जो अब बच्चे नहीं थे , कई बच्चों के बाप बन चुके थे, किसी खास टॉपिक पर बहुत सीरिसली डिस्कस करने लगे। कुछ देर में दुखद वातावरण ऊंची आवाजों, तानाकशी , आरोपों व प्रत्यारोपों में बदलने लग गया। राकेश अपना पक्ष सपष्ट करते हुए कह रहा था कि मैं हर महीने अपनी सेलरी से इंडियन करंसी में एक फिक्सड एमाउंट ट्र्ांस्फर कर देता था ताकि उनको कोई तकलीफ न हो। पापा ने हायर वेजिज पर एक फुल टाइम मेड रखी थी । उनके हर कंफर्ट का मैंनें पूरा ध्यान रखा। सुरेश ने भी अपना पक्ष रखा कि मैं पापा का हालचाल वीकेंड पर फोन पर पूछ लेता था। सुनीता ने ताना मारा,‘‘ पापा तुम दोनों की आपसी लड़ाई से बहुत परेशान रहते थे।मम्मी के जाने के बाद टूट से गए थे। तुम्हारी महारानियां इंडिया तो आती जाती थी लेकिन एक दिल्ली से अपने घर वालों से मिलकर और खूब सारी शापिंग करके टाइम कम होने का बहाना लगा कर वहीं से लौट जाती थी। दूसरी अमृतसर से अपने भाईयों की शादियों में भंगड़े पा के वहीं से जहाज चढ़ जाती थी। किसी ने तीन घंटे निकाल कर  के चंडीगढ़ आकर पापा  का हालचाल लेने का कष्ट किया ? मैं तीन साल पहले अपने छोटे छोटे बच्चों को यू. के ,अकेला छोड़ कर पापा के साथ पूरे 15 दिन रही थी । कितने खुश थे पापा! मम्मी की बातें करते। हमारे बचपन की फोटो , वीडियो दिखाते। मम्मी के आखरी समय की बातें शेयर करते।’’
        परिवार में बड़ा होने की हैसियत से राकेश ने समझाने की कोशिश की,’’ चलो हम सब ने अपने अपने हिसाब से अपने फर्ज़ पूरे किए हैं। हम सब के पास वक्त बहुत कम है। परसों मेरी फलाइट है। वर्क फ्राम होम के बावजूद इस कंपनी में छुटट्ी लेना एक बहुत बड़ी प्रॉब्लम है। हम तीनों को ही हफ्ते भर में लौट जाना है। सुरेश ने बड़े भाई के समर्थन में सिर हिलाया और मतलब की बात पर आया - पापा ने कोई विल तो बनाई होगी ? ये एक कनाल की कोठी है। इसके बारे कुछ तो लिख के गए होंगे। सुरेश की इस बात से राकेश और सुनीता की नम आखों में कुछ चमकने लगा। अफसोस गायब हो गया । दिमाग वसीयत के इर्द गिर्द घूमने लगा। राकेश बोला,‘‘ पॉश सेक्टर में है। कुछ दिन पहले एक फ्रैंड बता रहा था कि यहां प्रापर्टी की कीमतें काफी बढ़ गई हैं। रेट छः करोड़ का चल रहा है। हम में से कोई यहां रहेगा ! आई डाउट। ’’
      सुरेश ने शंका जताई कि पापा ने कभी मुझ से कभी फोन पर ऐसी किसी बात का जिक्र नहीं किया। शर्मा अंकल को पता होगा। वही इनके साथ आना जाना रखते थे। राकेश बोला चलो अब रात ज्यादा हो गई है । सुबह अंकल से बात कर लेंगे। तीनों सोने चले गए। परंतु किसी की आखों में नींद कहां? सब अपनी अपनी उधेड़ बुन में लगे रहे। राकेश गूगल पर प्रापर्टी के रेट सर्च करता रहा। सुरेश ,डीलरों के नंबर ढूंढता रहा। सुनीता सोचती रही कि कुछ पैसा यहां से मिल जाएगा और कुछ डायवोर्स फाईनल होने पर आ जाएगा तो अपनी और बच्चों की सेटलमेंट लंदन में ही अच्छी हो जाएगी।  सुरेश की चिंता यह थी कि आस्ट्रेलिया में भी  अभी तक पी.आर नहीं मिली हैं । जॉब सिक्योर्टी भी कोई नहीं । परमानेंट जॉब नहीं । अपना काम कोई चला नहीं। इकॅानमी में रिसेशन अलग से है।  हो सकता है इंडिया ही वापस आना पड़े। अगर इसी कोठी के लिए अड़ जाऊं, तो ये दोनों क्या कर लेंगे? अगर ये कोठी छः में निकलती है तो भी दो करोड़ तो हिस्से आ ही जांएगे। जीरकपुर में ‘दो ’ में अच्छा फलैट मिल जाएगा। वापस न भी आए तो रेंट पर दे देंगे।
                  सुबह शर्मा जी खुद ही उनसे चाय नाश्ते के बारे पूछने आ गए। अंधों को क्या चाहिए- दो आखें। औपचारिकता के बाद राकेश ने पूछ ही लिया अंकल , ‘‘ पापा कुछ इस कोठी के बारे कभी आप से बात करते थे ?’’ शर्मा जी कुछ शांत रहे फिर  उन्हें आश्वस्त किया,‘‘मित्तल साहब तो बड़े दिल वाले थे। ’’
एक गहरी सांस लेकर आगे बढ़े,‘‘ इससे भी बहुत बड़ा बना गए हैं। तुम सब तैयार हो जाओ। तुम्हें वहां ले चलता हूं। तीनों के दिल उछलने लगे। सुनीता कहने लगी,‘‘पापा को एक बार फोन किया था पर उन्होंने ऐसी किसी सेकेंड प्रापर्टी का जिक्र नहीं किया।’’ सुरेश ने आशंका जताई,‘‘ मैं तो वीकली फोन करता था, पापा ऐसा सरप्राइज देंगे .....नेवर एक्सपेक्टिड! ’’  सुनीता ने आशा व्यक्त की- हो सकता है मम्मी का  इंश्योरेंस, पी. एफ, ग्रेच्युटी वगैरा मिला कर मेरे लिए कुछ खरीद लिया हो। मॉम को मुझ से बहुत लगाव था।’’
   शर्मा जी ने सबको अपनी सेवन सीटर कार में बैठाया और पी जी आई की ओर चल पड़े। रास्ते में राकेश ने पूछा - ,’’अंकल! पापा ने न्यू चंडीगढ़ में कुछ इन्वेस्ट किया है या इस अस्पताल के पीछे नया गांव के पास ? शर्मा जी ने बिना कुछ जवाब दिए, गाड़ी पी .जी. आई की पार्किंग में लगा दी। सुनीता ने पूछा,‘‘ अंकल यहां क्या डैथ सर्टिफिकेट लेना है?’’ परंतु  शर्मा जी ने सब को अपने पीछे आने का इशारा किया।
  कुछ दूर चल कर सब एनॉटमी विभाग में पहुंच गए जहां हेड ऑफ द डिपार्टमेंट ने उनका स्वागत किया। औपचारिकता के बाद डाक्टर साहिबा सब को एक गैलरी में ले गई। वहां मित्तल साहब की एक फोटो लगी हुई थी । उनके इर्द गिर्द कुछ और लोगों की फोटो भी लगी हुई थी।
                 शर्मा जी ने रहस्य से पर्दा उठाया,‘‘बेटा ! मित्तल साहब ने जीते जी समाज की सेवा की और जाते जाते अपनी पूरी बॉडी यहां दान कर गए। यही नहीं पूरे शरीर के साथ , ये पूरी कोठी भी पी. जी. आई के नाम कर गए हैं। तुम सब उनकी विल के बारे पूछ रहे थे। ये विल की कापी है।  ये सुन कर सबके चेहरों पर हवाईयां उड़ने लगीं। ऐसे लगा भूकंप में वह कोठी धड़ धड़ा कर धराशायी हो गई है साथ ही सबके सपने भी कांच के घरों की तरह चूर चूर हो  गए हों।
 शर्मा जी आगे बोेले,‘‘ मित्तल साहब कहते थे कि मेरे तीनों बच्चे फारेन में... वेल सेटल्ड हैं। इंडिया कोई आना नहीं चाहता। मैं वहां जाना नहीं चाहता। कोठी का क्या करेंगे? बेहतर होगा ट्र्स्ट बना कर इसमें जनता के लिए एक डायग्नोस्टिक सेंटर खोल दिया जाए जहां कोई संस्था नो प्रॉफिट नो लॉस पर जनता के स्वास्थ्य के लिए काम करे।’’
                       डाक्टर साहिबा ने उन्हें संात्वना देते हए ढाड़स बंधाया,‘‘ आपके पापा जीते जी तो जन कल्याण करते थे, जाते जाते भी दस लोगों को  नया जीवन दे गए।’’  सुरेश गुस्से में बोला- डाक्टर साहब !  आप कोविड पेंशेंट की बॉडी कैसे ले सकते हैं ? दिस इज अंगेस्ट मेडिकल एथिक्स। आपने हमारे पापा का अंतिम संस्कार भी नहीं होने दिया ?
डाक्टर बोली, ‘‘कूल बेटा कूल! किस ने कहा ...आपके पापा की डेथ कोरोना से हुई। सिर में चोट लगने से हुई थी । ब्रेन डेड हो गया था और ऐसे केस में ही इस मानव शरीर का उपयोग औरों के लिए किया जा सकता है।मिस्टर शर्मा को मालूम था कि उन्होंने संपूर्ण देहदान का फार्म भरा हुआ है और अपनी रजिस्टर्ड वसीयत में भी बड़े साफ तौर पर लिखा है कि मेरे मरने के बाद मेरा शरीर पी. जी आई को दान दे दिया जाए।  आप घबराएं नहीं ।’’ तभी शर्मा जी ने सब को शांत करते हुए आगे बताया कि हमने पूरे रीति रिवाजों से उनका अंतिम संस्कार किया और उनके पार्थिव शरीर  को अग्नि में समर्पित  करने की बजाय यहां पूरे समाज के लिए समर्पित कर दिया।
                    डाक्टर साहिबा फोटो गैलरी की तरफ इशारा करके एक एक चित्र की बैक्ग्राउंड बताने लगी,‘‘ये मिस्टर अब्राहम हैं जिन्हें आपके पापा का हार्ट ट्रांस्पलांट किया गया है । आज उनके शरीर में आपके पापा का दिल धड़क रहा है। ये निर्मल सिंह हैं जिन्हें कश्मीर में आतंकवदियों ने पैर में गोली मार दी थी। इनके पैरों में मित्तल साहब के एक पैर की बोन लगाई गई है। ये आज चलने फिरने के काबिल हो गए हैं। और इस लड़की को देखो। कुछ गुंडों ने इसके चेहरे पर तेजाब डाल दिया था। इसकी स्किन ग्राफटिंग चल रही है। ये है पिंटू ....इस बच्चे की पटाके चलाने से दोनांे आंखें चली गई थी । आज  यह बालक  मित्तल साहब की आखों से पूरा संसार देख रहा है।  ये मिस्टर खन्ना हैं ...एक बिजनेसमैन। इनके शरीर में आपके पापा का  लिवर प्रत्यारोपित किया गया है। आपके डैडी के कारण इन्हें नया जीवन मिला है। जो बाकी फोटो आप देख रहे हैं, इनमें वो लोग शामिल हैं जिनमें इस महान आत्मा के कुछ पाटर््स जैसे पैनक्रियाज, लिगामेंट्स, किडनी, लंग्ज आदि में लगाए गए हैं। यही नहीं कुछ दिनों बाद  उनका स्केल्टन अनाटमी के विद्यार्थियों के रिसर्च वर्क में काम आएगा।
                           अपने पापा के शरीर को ऐसे छिन्न भिन्न होने की कल्पना से ही वे तीनों  सिहर गए।
  शर्मा जी सब के चेहरों पर आए मनोभावों को भंापते हुए और उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए मनोबल बढ़ाने लगेे ,‘‘ मित्तल साहब एक महान व्यत्ति थे। विचारों से ही नहीं कर्मो से भी , वेरी प्रैक्टीकल पर्सन। इस संसार में जो आता है.... एक दिन राख़ हो जाता है या सुपुर्दे ख़ाक हो जाता है। शरीर नश्वर है, आत्मा अजर अमर है। भारत तो आदिकाल से देहदान में अग्रणीय रहा है। दधीचि ऋषि ने वृतासुर राक्षस को मारने के लिए अपनी मृत्यु के पश्चात अपनी अस्थियां दान कर दी थी ताकि उनसे वज्र बना कर एक असुर से समाज को मुक्ति मिल सके। आज समाज रस्म किरया और शोक सभाओं के बाद दूसरी शोक सभा में व्यस्त हो रहा है परंतु आपके पापा सदा बहार रहेंगे। जैसे हमारे धर्म में माता के नौ भिन्न भिन्न स्वरुप हैं वैसे ही मित्तल साहब के नौ शरीर हैं और नौ के नौे बिल्कुल जीवंत। वे न होकर भी हम सब के साथ नौ रुपों में विद्यमान रहेंगे।
तीनों भाई बहनों के चेहरों पर संतोष का भाव उभरने लगा। 
               डाक्टर साहिबा ने उन्हें एक सर्टिफिकेट और तुलसी का एक पौधा उपहार स्वरुप दिया ताकि मित्तल साहब की मधुर   यादें सदा हरी भरी रहें और तुलसी के पौधे की तरह उनका शरीर सब को जीवन प्रदान करता रहे।
             अगले सप्ताह  तीनों वारिस अपने अपने देश लौट गए। तीनों के हाथों में वसीयत की प्रतियां पापा के पवित्र कार्य की याद दिला रही थी।


तारीख: 06.02.2024                                    मदन गुप्ता सपाटू









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