ऐ मन निराश न हो

ऐ मन निराश न हो
अभी तो तुम्हें जीवन के
रास्ते को पार कर
मृत्यु तक पहुंचना है
जीवन के सत्य को समझना है
तू क्यों परेशान हुए जाता है
अपनी व्यथा क्यों
हर किसी को सुनाता है
कहने - सुनने से कुछ नहीं होता
इंसान इस जीवन रूपी
चक्र में यूंही फंसा रहता
जरुरत है तो सिर्फ कुछ ऐसा
कर गुजरने की
दूसरे के हृदय को अपने
तीखे शब्दों से न कुचलने की
बस इंसान होकर
इंसान बने रहने की
फिर एक दिन ऐसा आएगा
शब्दों से कोई आहत ना हो पाएगा
जानती हूँ कुछ ज्यादा नहीं बदलेगा
पर इंसान अपने गम में भी
सदा मुस्कुराएगा।


तारीख: 21.03.2024                                    वंदना अग्रवाल निराली









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