कौन है


कौन है जो, निरी अंधेरी रात में
विचर रहा जो मेरे मन की बात में
घन तिमिर ठहर बुझते मुझ से
मूक छनों में घनघनाहट किससे
असंख्य सितारों के घने संघात में
विचर रहा जो मेरे मन की बात में


कौन है जो दूर तलक विस्तार भर
मनतरँग रोमांच भरे स्वआलोक से
स्मृति मात्र से प्रेम अग्नि दे सौगात में
कौन प्रज्ज्वलित त्रीवगतिमय वात में


मोहता स्नेह समर्पित लोचनों से
नेत्र थकते नहीं जिसकी बॉट से
कौन है सावन भादो मधुमास में
समा गया रोम रोम, हर स्वास में


कौन हैं जो डुबो रहा मधुर सुहास में
पल पल हर छन मेरे आभास में
कौन है जो, निरी अंधेरी रात में
विचर रहा जो मेरे मन की बात में    


तारीख: 06.04.2020                                    नीरज सक्सेना









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