लाठी में उसकी कोई आवाज़ नहीं होता बगैर उसके रज़ामंदी के आगाज़ नहीं होता । माँ-बाप की दुआ,रब की रहमत भी होती है फ़कत हौसले से यहाँ परवाज़ नहीं होता ।
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