लौटती है जब बेटियाँ,
मायके से।
माँ देती है,
मुट्ठी भर चावल,
गाँठ वाली हल्दी,
भर देती हैं माँएं, बेटियों के आँचल दुनियाभर के नेमतों से।
भाभी भर देती हैं,
सिन्दूर से माँग, महावर भरे पैर।
इतने से....बेटियाँ भर लेती है आँखो में गंगा,
और....
झोली भर मायके की यादें।
सहेज लेती है आसमानी बेटियाँ,
नेमतों को,मायके की सारी यादों को,
साड़ी के पल्लू में गट्ठर लगा।
ऐसी होती है नील गगन की आसमानी बेटियाँ।