मजदूर हूं मैं, मजबूर नहीं

यह देश,  देश बना तब,  जब मैंने इसका निर्माण किया

वीरान पहाड़ों को तराश कर मैंने ही अजंता और कैलाश किया

यह देश चला तब , जब हमने मिलकर कदम ताल किया

बेजान पत्थरों को मैंने ही ताजमहल और क़ुतुब मीनार किया 

जाना है खुद के भवन, चाहिए मुझे कोई पनाहगार नहीं

धीरे-धीरे नाप लूंगा दूरी, ज्यादा है ,पर कोई बात नहीं

जाने कितनों की जिंदगी की जिसने बिसात तोड़ दी है

उस पक्की सड़क पर भी मैंने कदमों की छाप छोड़ दी है

जिस सड़क को बनाने में मैंने एक दिन-रात किया है

उसी सड़क का  देखो मैंने अपने खून से श्रंगार किया है

मुझे रोक सके मेरी मंजिल से वो साहस किसी के संग नहीं

माना पैरों में पड़े हैं जख्म , पर हौसला भी मेरा कम नहीं

था गुमान उसे अपने किलोमीटरो पर,पड़ा मुझे कोई फर्क नहीं

नाप लिया है उसे कदमों से, उसे था मेरी जिद का इल्म नहीं

बड़ी-बड़ी मुश्किलें भी जिसके इरादों के सामने छोटी हो जाती है

वो मजदूर हूं मैं, सूरज की गर्मी भी जिससे टकराकर पानी हो जाती है

नेताओं की चिकनी चुपड़ी बातों का मुझे अब सरोकार नहीं

मजदूर हूं मैं , मुझे मजबूर कहने का किसी का अधिकार नहीं


तारीख: 11.04.2024                                    रूपक कुमार









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