मुझे जिसने छाँव दी उम्र भर 

 

मुझे
जिसने छाँव दी उम्र भर
वो पेड़ खोखला हो चला है
यक़ीनन
मगर वक़्त
की आँधी की मार से
तब बच के कहाँ जाऊँगी
मैं गमों की धूप में फिर छाँव की
आस लिए कहाँ जाऊँगी
जड़ें माना कमजोर हो चली हैं
हारी थकी टहनियाँ झुकने लगी हैं
ये देख दुःख का भार बढ़ रहा है
साँस मेरी अब रुकने लगी है

सोच रही हूँ कि
ये पेड़ जो हवा के
एक झोंके से
कहीं गिर जायेगा
ताउम्र जिसके
साये में रही रुह
ये सह न सकेगी तूफ़ान
मन थपेड़ों की मार से गर जायेगा
ज़िन्दगी पूछ रही है तुझसे या-रब
जब दुःख का सूरज होगा सर पर
तब बिना उस शज़र के कैसे कटेगा मेरा सफ़र!


तारीख: 15.04.2020                                    रश्मि विभा त्रिपाठी









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है