प्रकृति

श्रावण बेला में पल्लवित नित नूतन सृजन,
जाग्रत हो हिय में इक अनूठा स्पंदन।
प्रकृति करके सोलह श्रृंगार,
महकाने चली देखो! पुरूष का संसार।
गर पुरूष ही करें प्रकृति का अपमान,
तो कैसे गाएं गीत मल्हार।

राधा पूछें कान्हा से,
वसुधा पर ये कैसी आपदा ने जन्म लिया।
प्रकृति के सौंदर्य को इसने,
अपनी काली नज़र से ख़ाक किया।
जब प्रकृति को ही अपने सिंदूर के,
बिखर जाने का डर सताए,
तो कैसे गाएं गीत मल्हार।

प्रकृति तो फिर भी दुःख की 
काली घटा के बावजूद
अपना फर्ज निभा रही है।
मेघ जल बरसा धरा की अगन बुझा रही है।
शोकाश्रु को बरखा के नीर में कहीं छिपा रही है।
जब मन में न हो हर्षोल्लास,
तो कैसे गाएं गीत मल्हार।

श्रावण में तीज का त्यौहार,
प्रकृति के सौंदर्य में लगाए चार चांद।
इंद्रधनुष के सतरंगी रंग, हरियाली का बिछौना,मयूर का मनोहर नृत्य,बादलों की गर्जना।
जब सौंदर्य ही घर में कैद हो जाए,
तो कैसे गाएं गीत मल्हार।

जिसने विष कंठ में धर,
मानुष जाति का कल्याण किया।
शिवरात्रि के अवसर पर वही मानुष,
अभिषेक हेतु मंदिर न जा सका।
यहां मंदिर में ताले पड़े,
कैद में पड़ी जिंदगियां।
जब वायु में ही विष घुल जाए,
तो कैसे गाएं गीत मल्हार।

 


तारीख: 26.02.2024                                    मानसी शर्मा









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