प्रेयसी

तुम बन जाना विस्तृत नभ 
मैं उजली चांदनी बन जाउंगी, 
बनकर तेरी साथी चकोर 
पिंजड़ा छोड़ उड़ आऊँगीं।
होगा मेरा बसेरा वहाँ 
संग तेरे देखूँ सबेरा जहाँ,
तुम बन जाना सेमल का फूल 
मैं लाली उसकी बन जाऊँगीं।

मंथन से निकले अमृत तुम हो
रूप मोहिनी बन आऊँगी,
असुरों को सुरा, सुरों को अमृत 
संग्राम पर विराम लगाऊँगी।

तुम उपवन के तृण नोकों से 
मैं तुषार-तुहिन बन जाऊँगी, 
अरुणोदय की पहली आभा 
संग मैं लुप्त कहीं हो जाऊँगी।

तुम यज्ञ कुंड की महा अग्नि 
मैं आहूति बन गिरती जाऊंगीं, 
तुम देवालय के तोरण-बंदनवार 
मैं विविध वर्णा रंगोली बन जाउँगीं।

तुम शांत गहरे समुद्र से धरा पर 
मैं वेगमान गंगा बन जाऊँगी, 
स्वर्ग से अधोगामी हो भूलोक में 
अंत में तुममें विलीन हो जाऊँगी।
 


तारीख: 09.04.2024                                    मोहित त्रिपाठी









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