सुकूं की नींद

खिड़की, दरवाज़े, सोफे, ऐ.सी नए नए
फिर भी कहां सुकूं की नींद आई है
सुख की परिभाषा चली गई
जगह रुपयों ने बनाई है।।
अपने गैर सब एक से
जो सूट बूट में, प्रतिष्ठा उसी ने पाई है।
भूख से खाली
हाथों में बस 1 दिरहम की चाय की प्याली,
रख कर बस्ते में फाइल डिग्री वाली ,
माथे पर लेकर कर के पसीना
ठोकर कहां कहां खाई है,
सुख की परिभाषा चली गई
जगह रुपयों ने बनाई है।।
11 से 11 दफ्तर
समय चलता ही नहीं रुक कर
थक सा गया कोई चल चल कर,
जीवन जीने की चाह
कितनी व्यथा लाई है।
सुख की परिभाषा चली गई
जगह रुपयों ने बनाई है।।


तारीख: 09.04.2024                                    सारा ख़ान









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