स्वैच्छिक आत्मग्लानि

ये सबके साथ होता रहा है, होता है और होता रहेगा,
ये ऐसा खेल है जो हमेशा चलते रहेगा,
ये ऐसा षड़यंत्र है जो दिमाग खोखला करवाएगा,
ये और कुछ नहीं बल्कि पछतावा कहलाएगा।


धीरे - धीरे इंसान को अपने वश में करेगा,
उसकी पांचों इन्द्रियों पर राज्य करेगा,
उसे हर दिन वही सपना याद दिलाएगा,
ताकि वो खुद ही पछतावा कर पाएगा।


पछतावा एक ऐसा सम्मोहन है,
जो बड़े - बड़ों कि इच्छाओं को दबा देगा,
कुछ भयावह काम हमसे करवाकर,
मुश्किल में हमें बेशक पड़वाएगा।


और एक ऐसा समय भी आएगा जब,
ज़िन्दगी में पछतावे के सिवाय और कुछ नहीं रह जाएगा,
उज्ज्वल ज़िन्दगी में अंधकार का डर जगाएगा,
और ज़िन्दगी को इंसान से चुराकर बहुत दूर ले जाएगा।


इसीलिए जब भी मन में बुरा ख्याल आए,
या मन की बेचैनी हद से ज़्यादा बढ़ जाए,
तो अपने भीतर उस पछतावे को निकाल फेंकना क्योंकि,
ये सबके साथ होता रहा है, होता है और होता रहेगा।


तारीख: 08.04.2024                                    स्पृहा गोडबोले









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