तुम्हारी दी हुई स्मृतियाँ,
आज भी,
नेमतों के तौर पर,
दिल पर राज करती हैं।
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दर्द,
गहरे दर्द में तुम्हारी स्मृतियाँ,
तासीर करती हैं।
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तुम्हारी स्मृतियों को,
तामीर बना कर,
आज भी तुम्हारे लौट आने का,
इन्तज़ार करती हूँ।
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पतझड़ हो या बसन्त,
स्मृतियाँ ही शेष है मुझमें।