डायरी का पन्ना

देर रात और हृदय में कौंधती तूलिका मानो तिनके तिनके सपने,उल्लास, क्षोभ दैनिक पत्र यानि कि डायरी में सहेजे जा रहे हो।क्यों लगता है कि ये मेरा यहां स्वयं से साक्षात्कार है कभी उजला पक्ष तो कहीं स्वयं की छिछली छवि किंतु
हृदय के सहज उद्रेक बहुत कुछ कह जाते हैं और मुझे दूसरों से अलग कर देते हैं।

 

रोज़ कुछ नया अंकित हो जाता है डायरी के पन्नो पर नये शब्द जो उन चेहरो से कहीं गहरे अर्थ लिए हैं जो रोज़ सामने रहते हैं।जीने का अर्थ नित्य उन्हीं भावों में जीना नहीं जो मन को भाते हैं बल्कि कुछ नये करने के पक्षधर में लेना चाहिए स्वयं से बात करना स्वयं की एक सुघड़ छवि को तराशने के समान है चूंकि यहां व्यर्थ के क्रियाकलाप नहीं बल्कि स्वयं से किया जाने वाला साक्षात्कार है।

क्यों लगता है मैं स्वयं पर शोध कर रहा हूं स्वयं को निखारने के लिए दूसरों से स्वयं को भिन्न करने के लिए पर इसी में अब गहरी आत्मीयता है यकीनन .


तारीख: 06.04.2020                                    मनोज शर्मा




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