चाय की चुस्की और गुफ्तगू

चाय एक पेय नहीं, एक एहसास है जो जीवन में ऊर्जा के साथ साथ मिठास भी घोल देता है. सुबह सुबह की चाय हो या अखबार के साथ एक कप चाय की प्याली, अकेलेपन को दूर कर देती है.

चाय की चुस्कियों के साथ अगर गुफ्तगू हो जाये तो क्या कहने. वैसे चाय तो एक बहाना है, बातचीत का ज़रिया है.

जब कोई आपको एक कप चाय के लिए आमंत्रित करता है, तो इसका तात्पर्य है कि वह आपके साथ ज़िंदगी के वो पल बांटना चाहता है, जो अभी तक अनकहे, अनसुने हैं. वह कुछ आपकी सुनना, तो कुछ अपनी सुनाना चाहता है.

अपने मन की बात करनी हो या किसी को रोकने की चाह, सामने वाला भी तुम्हारे साथ कुछ पल बाँटना चाहेगा, वो सामने से ना ना करता रहेगा पर चाय का साथ चाहेगा, फिर भी तुम चाय बना लाना.

कहते हैं चाय के शौकीन खुद को रोक नहीं पाते, "कभी अगर तो कभी मगर" के बहाने से ही, होठों से छू लेते हैं.

चाय की दो प्याली किस्से कहानियों की गवाही देती है,चाय की दो प्याली, बातों बातों में मन की आवाज़ दूसरों तक पहुंचा देती है.

कभी कभी गर्म चाय की प्याली भी ठन्डे रिश्तों में गर्माहट ला देती है.
लेकिन अगर सच में रिश्तों में एहसास न हो तो उसकी हालत उस प्याली के जैसी हो जाती है जो कहती है...
"आज बैठी गर्म चाय लेकर,
ठन्डे रिश्ते गर्म करने,
चाय भी ठंडी हो गई और
आँख भी नम हो गई."

वहीँ दोस्तों के बीच, "चाय की प्याली और किस्सों का अड्डा", का स्थान ले लेती है, एक ही चाय की प्याली को आधा आधा पीना रोमांचक कर देता है.

चाय की चुस्कियां चाहे कड़कड़ाती सर्दी हो या चिलचिलाती गर्मी या फिर बारिश की फुहार.... चाय का अपना ही महत्व होता है.सावन में मिटटी की सुगंध हो या अदरक की महक, ऐसा लगता है बूंदों को भी हो रही हो चाय की तलब.

चाय पूछना भी शिष्टाचार है, सीधे सीधे घर आमंत्रण ना देकर, "कभी चाय पर आओ ना", कहना ज़्यादा करीब लगता है और सामने वाला भी प्रतिउत्तर में आपको ही चाय पर निमंत्रण दे बैठता है.

तो अगली बार किसी के चाय के निमंत्रण को सहृदय स्वीकार कर लेना या फिर दिल से ही उसे आमंत्रण दे देना... बस तो लीजिये चाय की चुस्कियां और गुफ्तगू का मज़ा ... इससे बड़ा कोई आनंद नहीं.


तारीख: 20.02.2024                                    मंजरी शर्मा









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