हर सुबह नयी रोशनी
उम्मीदें लेकर आती,
अँधकार से निकालकर
प्रकाश को दिखाती,
जग की सुन्दरता
सुन्दर चित से देखो,
शीतल पवनों की छाया में
सुबह निकलकर तो देखो ,
इन पवनों की नई दिशाएं
नये पथ को दिखा रही,
है ये जिन्दगी --
तो कभी पुर्वा ,तो कभी पछुआं
सी बहा रही,
उठो एक बार फिर तुम
उन नये रास्तो पर चलने को ,
हुआ सबेरा चिड़िया बोली
अब तो उठ जा रे पगले,
क्यूं खोया है
तू सपनों में
नीरसता की छाया में
उठा गिरे मन को
ज्वार-भाटा सी इच्छाओं को
अब पूरा करता तू चल
अब पूरा करता तू चल
वो पथिक तू आगे बढ़ता चल
वो पथिक तू आगे बढ़ता चल