रहगुजर में इश्क़ के हैं यार मेरे पत्थर बिछे
सितमग़र के पहलुओं में ढेर सारे खंज़र बिछे
है वबा का दौर मालिक बिक रहा है मय यहाँ पे
प्यास से जो मर गये हैं ख़ौफ़नाक य पिंजर बिछे
सफ़र करता आसमाँ में है नहीं कोई डर उसे
असल भारत सड़क पर है भूखे नंगे बेघर बिछे
अंदर घरों के छिपे हैं लोग मेरे गाँव के जी
है पड़ी सूनी य गलियाँ दहशतों के मंजर बिछे
मर गयी इंसानियत जी क्या कहूँ अब क्या बचा है
नफरतों के शहर में जी कंक्रिटों के खण्डर बिछे