- तीसरी लहर के डर से गांव के कुछ युवा कार्यकर्ताओं ने वैक्सीन लगवाने के लिए एक कैंप लगवा दिया। लालू गले में लाउड स्पीकर लटकाए चिल्ला चिल्ला कर मुनादी करने लगा- वैक्सीन लगवा लो वैक्सीन। रंग बिरंगी वैक्सीन। मुफत में लगवा लो वैक्सीन। गांव के सभी लोग लाइन लगा कर रंग बिरंगी ड्रेस पहने ऐसे निकल पड़े जैसे वोट देने निकलते हैं। लेकिन भूरी ताई अपने स्टैंड पर अड़ी रही । न कभी वोट देने गई न टीकाकरण के लिए तैयार हुई। गांव के छोरे जो आते जाते ताई से चुहलबाजी करते थे, वे सब होली जैसा हुल्लड़ करने के लिए, ताई को घेर कर खड़े हो गए। ताई अपनी रोैेबीली आवाज में चिल्लाई- रे छोरो! मैं नब्बे उप्पर पांच होली, थारे से भी जयादा तगड़ी हूं। इब तक एक भी सुई न लगवाई। बचपन में बांह पर जबरदस्ती टीका लगा दिया था, आज तक निसान दीखे है। मन्ने कोई जरुरत नी टीेके फीके की। आज तक बुखार कदी आया मन्ने? ओैेर मन्ने गांव का चौधरी कुछ न कह सके तो ये कोरोना कया कर लेवेगा? करोना शरोना सहरों में आवे जावे, म्हारे गांव में मेरे कहे बगैर, पत्ता तक न हिले, यो कैसे आ सके है? जब राम जी बुलाएंगे तो थारा ता ऊ भी न रोक सके। पिछले महीने , राम प्यारी ,राम को प्यारी होली। बिन बुलाए तो भगवान के घर न जावै कोई।
कुछ लोग उदाहरण देने लगे- ताई! देख , प्रधान मंत्री की मां 100 बरस की है। उसने भी टीका लगवा लिया है। इब वो और चालेगी। ताई इस बात पर कंपीटीशन की खतिर कन्विंस हो गई। बहुओं ने ताई को रंग बिरंगी साड़ी पहनाई, ओढ़नी ओढ़ाई, माथे पर चांदी का बिन्दा लटकाया ओैर एक विवाह का वातावरण बना कर किसी तरह कैंप में तोर दी।
खैर! जब ताई लौटी तो सारे गांव वाले एक घेरा बना कर ताई के चारों तरफ खड़े हो गए। कुछ नौ जवान छोरे लोकल प्रैस कान्फ्रेंस नुमा माहौल बना कर ताई से चुहलबाजी करने लगे- ताई कैसा लाग्या ? दर्द तो नईं होई कोई? कौेन सी वैक्सीन लगवाई?
ताई ने पूरे कान्फिडेंस से जवाब दिए- दर्द कोई न होई। लाग्या चींटी काट री सै। इब्ब मन्ने कया बेरा कौन से रंग का टीका लाग्या। मैं तो थारे ताऊ को ताकरी थी।
जब पिछले साल वैक्सीन नहीं आई थी , लोग गब्बर की तरह आसमान की तरफ गर्दन उठा उठा कर सरकार से पूछते थे- कब आएगी वैक्सीन ? वैक्सीन कब आएगी ? अभी तक आई नहीं वैक्सीन? सरकार क्यों नहीं बना रही वैक्सीन? जब आ गई तो बरबाद हो गई। लोग गाने लगे- ये तेरी वैक्सीन ....ये मेरी वैक्सीन। ये भाजपा की वैक्सीन । मैं नहीं लगवाउंगा । ये विदेशी है। मुझे स्वदेशी चाहिए। किसी को रशियन चाहिए। मैं तो स्टेनलेस स्टील का बना हंू। योगा करता हूं और सारी दुनिया को करवाता हूं। मैं कयों लगवाऊं वैक्सीन? अब तीसरी लहर का खौफ सताने लगा तो हर जगह ठेलम ठेल। पहले मैं....पहले मैं .... कहते हुए एक दूसरे पर चढ़े जा रहे हैं। वैक्सीन के लिए सिफारिशें लग रही हैं ।
वैक्सीन अरेंज्ड मैरिज की तरह हो गई। पहले आप अच्छी नौकरी और स्टेटस के चक्कर में घोड़ी या डोली चढ़ने को तैयार नहीं होते । फिर आपको उनमें से कोई पसंद नहीं आती है। जिन्हें मिल जाती है, वे पछताते रहते हैं कि कुछ दिन रुक जाते तो शायद इससे भी अच्छी मिल जाती। उसकी मेरी से अच्छी क्यों ? फिर सठियाने के करीब पहुंचने पर उचित वर - वधु की तलाश में भटकते हुए उन्हीं रिश्ते दारों से कहते हैं- भइया! कोई भी चलेगी। विडो भी! डायवोर्सी भी । दो चार बच्चों की मां भी।