बहना मेरा स्वभाव है, सागर की तरह।
रुकना नहीं किनारे पे, छूके निकल जाना।
जाना उतनी ही दूर जितने कि पास,
आसमान की ऊंचाइयों को छूना,
और छूना समुन्द्र की गहराई को।
पत्थरों से टकराना किनारे पे,
लहरों को चूमना वियावान में।
क्या यही जीवन है, यह प्रश्न हमेशा झकझोरता है।
संसार पहेली है की धागा,
कभी सुलझी लगती है तो कभी उलझी।
यह हर कदम पे सवाल, हर कोने में जाल
जैसे विधाता जानना चाहता हो कहीं उसने गलती तो नहीं कर दी।
जीवन का यह दोहरा रूप,
सच और झूठ।