हां , वो पुरुष है, एक टूटा हुआ पुरुष
और उसे अभिमान है पुरुष होने का
इसीलिए वो गाहे बेगाहे हाथ उठा लेता है
उस स्त्री पर, जिस पर वह दावा करता है
अपनी पत्नी होने का, और इस प्रकार
वो अपने पति होने का दायित्व निभाता है।
ये वो पुरुष है जो कुंठित सा है जीवन में
अपनी कुंठाओं के कारण, वो अपनी
कुंठा का निवारण करता है हाथ उठा कर,
और उसे आता ही क्या है, कुंठाग्रस्त जो है,
वो कैसे बर्दाश्त कर सकता है किसी
नारी का हंसना - खिलखिलाना।
अब बदलते हुए जमाने में पुरुष को भी
बदलनी होगी अपनी भूमिका, उसे
ढूंढ़ना होगा अपनी कुंठा का हल, जो
मिल सकता है मात्र स्त्री के सान्निध्य में,
स्त्री नहीं है भोग की वस्तु बल्कि स्त्री है
पुरुष का अभिमान और उसका सहारा।