आज कलम मेरी

आज कलम मेरी कुछ  लिखने मे झिझकती है,
क्या लिखूँ सखी ये मुझसे  बार बार पूछती हैं।।
कहा मैने उसे, कि दिखा दे अपना फिर अद्भुत अन्दाज,
पर वह मायूसी से बोली,इसकी जरूरत नही रही आज।।

सुनकर उसकी वाणी, मैने उसको रोका।
क्यूँ कहती हो ऐसा, पूछकर उसको टोका।।
वह बोली सखी अद्भुत रचने की किसको पड़ी है,
आजकल तो ब्हाट्सएप, फेसबुक और गूगल की झड़ी है।।

मौलिक रच कर  मुझे बोलो क्या होगा  फायदा,
जब चोरी की रचना से ही मिल जायेंगे लाईक्स ज्यादा।।
मैने समझाया, रचो मौलिक तो लाईक्स भी आयेंगे,
और ना आयें भी तो क्या, हम लिख के सुकून पायेंगे।।

वह बोली सखी बात तो तुम्हारी लगती है सच्ची,
किसी की रचना चोरी करना बात नही ये अच्छी।।
माना कि कई बार कोई रचना दिल को छू जाती है,
उसे औरो से साझा करने की मन मे फिर आती है।।

माना कि रचना को अपनी वाॅल पर जरूर स्थान दें,
पर उसके रचनाकार को भी, वहीं उचित सम्मान दें।।
गर रचनाकार का नाम नही है आपको ज्ञात,
तो रचना कापी पेस्ट के बाद लिखो अज्ञात।।

एक रचनाकार के लिये बालक के समान होती है रचना,
उसके चिन्तन, मनन, और विचारो का सार होती है रचना,
रचना पढे़, समझे, और जी मे आये तो करें साझा,
क्योकि रचनाकार का अभिमान होती है रचना।।


तारीख: 04.02.2024                                    संगीता त्रिवेदी









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