स्थायित्व

बदलती तकनीकें,
भागती जिंदगी..,
खत्म होता बचपन
और छिपता अल्हड़पन
समझदारी के आगोश में,
बदला है बहुत कुछ इस दरम्यान,
फिर भी कुछ है
जो रहता अपरिवर्तित;
'इस दौर' से 'उस दौर' तक।

मार्च की दुपहरिया में
हवाओं की बेरुखी,
फूले हुए सरसों 'औ'
आम्र-मंजरिओं के बीच
एकाध-सूखे-झड़ते पत्ते
अभी नहीं बदले।
परीक्षाओं के बाद होने वाली
मस्ती के स्वर,
मन के किसी कोने में
पल रहे हैं अब भी।

 जाने-पहचाने रास्तों पर
अनजान चाह...
मुलाकातों की,
नीले पीले आकाश वाले
ढलते सूरज की पृष्ठभूमि में-
उलट-पुलट कर चासनी बनाने वाले
मन के आवेगों की-
झरोखे बासंती बयारों के,
पुरानी गली और
नई सड़क के पास
मकान पुराना-सा,
बूढ़े बरगद की ओट लिए
है 'यथावत' अब भी।
पुख्ता करता इस बयान को
कि "यादें कभी नहीं मरतीं।"

जानता हूँ!
बताया जा चुका है सैकड़ों बार;
"परिवर्तन ही नियम है शाश्वत"
पर मेरा जिद्दी मन
'स्थायित्व' की डोर पकड़;
उड़ना चाहता है
आज भी,
उस पतंग के साथ
जो मेरे आँगन की नीम पर
उलझा था 'कल'।


तारीख: 17.02.2024                                    अंकित









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