अदृश्य भय

अदृश्य भय सम्मुख आया, सारे के सारे ठहरे हैं
कितनों ने अपनो को खोया, घाव बड़े ही गहरे हैं
सूने सड़क दुआरे गालियां, सायें सायें सी करती है
एक नगर एक गांव नहीं,  कांपी सारी धरती हैं
आवागमन सब ठहर गया, परिवहन तंत्र सब सूना हैं
आधि व्याधि का प्रतिशत बढ़ता, दिन पर दिन दूना हैं
निगल रही हैं अदृश्य बीमारी, तोड़े सारे पहरे हैं
कितनों ने अपनो को खोया, घाव बड़े ही गहरे हैं
औषधियों के भंडारों में, अनगिनत प्रयोग खंगाले हैं
घोर निराशा वर्तमान की, अनगिनत ज्ञान रच डाले हैं
जिन अपनों से मिलन बिना था जीवन बड़ा अधूरा रे
स्वयं बना दूरियां उनसे, किया सुरक्षा घेरा पूरा रे
एकांतवास से संभव लगते, कल के स्वपन सुनहरे हैं
अदृश्य भय सम्मुख आया, सारे के सारे ठहरे हैं
जीवन रक्षा के भय से, विमुक्त हुए अनुबंध सभी
उन हाथों से हाथ भी बिछड़े, जो रहते थे साथ कभी
ताले मंदिर मस्जिदों में अब भीड़ न लगती हाटों में
न पर्वतारोही दीखते, न जमघट लगता घाटों में
दुबक रहा जनमानस देखो, ज़हरीली हवाओं के घेरें है
निगल रही हैं अदृश्य बीमारी, तोड़े सारे पहरे हैं
कितनों ने अपनो को खोया, घाव बड़े ही गहरे हैं


तारीख: 18.04.2024                                    नीरज सक्सेना









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