तुमने मुझमें क्या पाया

 

तुमने मुझमें क्या पाया,

क्या देखा मुझमें क्या भाया

तुम मुझमें समा रहीं क्यो,

क्यो मैं तुझको सजा रहा हुं।

तुम मधुर चांदनी,निखर रहीं हों,

मै ढ़लता दिनकर का साया ।

तुमने मुझमें क्या पाया,

क्या देखा और क्या भाया।

 

दिल में मेरी बंदिशे है,

दिल में है अरमान भी

क्यो तुम मुझसे लिपट रही हो,

क्यो मैं खुद को भुला रहा हुं

तुम तरुणाई में बहक रहीं हों,

मै तरुणाई का छाया।

तुमने मुझमें क्या पाया,

क्या देखा और क्या भाया।

 

दिन भगिनी रजनी कांता

ये क्या हमने कर डाला

अपने ही हाथों, अपनी किस्मत

रुसवाई से भर डाला

तुम जीवन दर्शन कर रही हो

किसकी लिखीं किताबों से,

मै जीवन दर्शन गढ़ रहा हुं

अपने बीते पल से

तुम रजनीगंधा बन महक रही हो,

मै भ्रमर बगियन वाला

तुमने मुझमें क्या पाया,

क्या देखा और क्या भाया।


तारीख: 23.08.2019                                    ईश्वरी प्रसाद परगनिहा









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