अजब पहेली जिंदगी

गिरगिट जैसी रंग बदलती
यह अलबेली जिंदगी
क्या-क्या अपने संग बदलती
अजब पहेली जिंदगी

बच्चों के खिलते चेहरों पर
खिलखिलाती जिंदगी
बूढ़ी आँखों की ज्योति सी
टिमटिमाती जिंदगी
खुशियों की दीवाली बनकर
झिलमिलाती जिंदगी
शोषण की चक्की में पिसती
तिलमिलाती जिंदगी

सुख की बगिया के फूलो पर
कभी महकती जिंदगी
अहंकार की मदिरा पीकर
कभी बहकती जिंदगी
मधुर मिलन की बनी साक्षी
कभी चहकती जिंदगी
विरहा की अग्नि बन मन में
कभी दहकती जिंदगी

बनी ओस की बूँद फूल पर
कभी ढलकती जिंदगी
गंगा-जमुना बन आँखों से
कभी छलकती जिंदगी
मन में नफरत का जहर भरा तो
बने गंदगी जिंदगी
हो प्यार खुदा के बंदों से तो
बने बंदगी जिंदगी

सतरंगी सपनों के पंखों से उड़ते 
मन के पंछी सी चहचहाती जिंदगी
अन्नपूर्णा धरती माँ का धानी आँचल 
बन खेतों में लहलहाती जिंदगी

मर्यादा की लक्ष्मणरेखा में सिमटी 
अनसूया  की परंपरा सी जिंदगी
कभी गगन के नीले आँचल में सिमटी 
ममता की गोदी वसुंधरा सी जिंदगी

कभी लाजवंती सी घूँघट में सिमटी
संस्कार की की खान बनी यह जिंदगी
माँ की ममता से भीगा आँचल या फिर
लोरी की मीठी तान बनी यह जिंदगी

कभी निराशा की काली चादर ओढ़े
सहमी-सहमी, घुटी-घुटी सी जिंदगी
हालातों की चट्टानों से टकराकर
चूर-चूर,बिखरी-बिखरी सी,लुटी-लुटी सी जिंदगी

मिथ्या आरोपों के फंदों पर यूँ ही कभी
निर्दोष जानकी सी लटकती जिंदगी
असमंजस के दोराहों पर भरमाई
कभी भटकती, कभी अटकती जिंदगी

सीमाओं पर रणचंडी बन खेल खून की होली
बलिदानों की रचे रंगोली जिंदगी
अंतरिक्ष में उड़े कल्पना बन बेटी
भारत माता की मुँहबोली जिंदगी

धूप-छाँव से बारी-बारी आते-जाते
सुख-दुःख की एक आँखमिचौली जिंदगी
जैसी भी है, मरते दम तक साथ चले
जीवनसाथी सी हमजोली जिंदगी


तारीख: 07.09.2019                                    सुधीर कुमार शर्मा









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