रोटी के अन्धे क्या गाए ,बेहतर भारत कब तक

राजनीति की रीत नई है कुंवारों से प्रीत सही है,
ममता ,माया, मोदी ,योगी ,जोगी गण की जीत नई है।
जनतंत्र की नई माँग पर यौवन है लाचार,
दीन दयालु दीन बंधु हे विनती बारंबार,
जरा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार।

गठबंधन का दोष यही है जो दोषी है वो ही सही है,
कोई चाहे करे ढ़ीठाई पर पर तंत्र की बात यही है।
सत्ता की भी यही जरूरत देसी यही जुगाड़ ।
दीन दयालु दीन बंधु हे विनती बारंबार,
जरा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार।

आप चाहें तो बुद्धि भाग्य का हो सकता है योग,
और कुर्सी के सहयोगी का मिल सकता सहयोग।
कबतक माता का रहे अधूरा सपना एक आजार।
दीन दयालु दीन बंधु हे विनती बारंबार,
जरा बना दे इनके मन की अबकी तो सरकार।

धनिया नींबू दाम बढ़ेगा,कब तक बोलो कब तक?
डीजल का यूँ नाम बढ़ेगा,कबतक आखिर कबतक?
जनता की पीड़ा तो हर लो,कीमत आटे की कम कर लो।
रोटी के अन्धे क्या गाए ,बेहतर भारत कब तक?
 


तारीख: 12.03.2024                                    अजय अमिताभ सुमन









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है