फिर कोई ख़त

फिर कोई ख़त, जला रहा है वो
घर की बत्तिया, बुझा रहा है वो
जिससे हाथ मिलाने से, कतराता था
ज़रा देखो उसे, गले लगा रहा है वो
मेरे नसीब में, तुम नही हो लिखे
हाथो की लकीरें, दिखा रहा है वो
घर की मरम्त, करने के बहाने
एक नई दीवार, उठा रहा है वो
चला जाता हूँ , ये जानते हुए आखिर
मुझे नही, किसी और को बुला रहा है वो
फ़ना हो जाने का, हुनर है उसमें
दर्द की धार, तेज कर रहा है वो
एक सवाल क्या, पूछा मैंने उससे
मेरी औक़ात, दिखा रहा है वो
 


तारीख: 10.04.2024                                    ज्योतिष सिंह









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