कुछ न कुछ है

सत्तर  चूहे खाकर बिल्ली चली हज़ को
जैसे  सौ  झूठ दबा देतें  हैं एक सच को ।
कौन खुश है यारों याँ अपनी ज़िन्दगी से
कुछ न कुछ है रहता शिकायत सब को ।


तारीख: 11.02.2024                                    अजय प्रसाद









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है