सत्तर चूहे खाकर बिल्ली चली हज़ को जैसे सौ झूठ दबा देतें हैं एक सच को । कौन खुश है यारों याँ अपनी ज़िन्दगी से कुछ न कुछ है रहता शिकायत सब को ।
साहित्य मंजरी - sahityamanjari.com