लौटना 'उम्मीद' है!

शाम ढलते ही
लौटते हैं पक्षी घोंसलों में,
और चूजे वापस
अपनी माँओं के पास,
भेड़ों का झुंड
लौटता है बसेरों की ओर..,
चरवाहे पसर जाते हैं
अपनी आरामगाह में।

पर कई बार
छूट जाते हैं कुछ बच्चे
रास्ते में ही।
भटक जाते हैं।
समूह के बाकी सदस्यों से
उनका बिछड़ना
बनता है चिंता का सबब।

ऐसे बच्चे जूझते हैं
अपने मुकद्दर से।
अंधेरे की गिरफ्त में
रोशनी से नजरें मिलाते हैं;
आँखों से
नीली-बिजलियाँ फेंकते-
जारी रहता है उनका संघर्ष
सुबह की 'उम्मीद' में।
पहाड़ की तराई
या झाड़ियों की ओट में,
किसी गहरी-सँकरी-खाई
या छिछले गड्ढे में,
अपनी राह तलाशते हैं 'वे'
घर लौटने की उम्मीद लिए।

'उम्मीद' मुक्ति को बांधता है;
एक 'और'
अगले कदम तक,
एक 'और'
अगले जनम तक,
एक 'और' दूसरी कोशिश तक।

'उम्मीदों' की शय में
नाचता है जीवन
लहरों की धार पर,
कांटों की नोक पर
खिलते हैं फूल!
'उम्मीदों' की छतरी पकड़े
लौटता है मजदूरी-कुनबा।
'उम्मीदों' के आश्रय ही
मुड़ती है पगडंडी
गांव की तरफ।

'उम्मीद'
दुनिया की सबसे अच्छी चीज है!
संसार के बचे रहने के लिए
जरूरी है-
रेशा-भर 'उम्मीद' का बचा रहना।


तारीख: 21.03.2024                                    अंकित




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