मेरी भी इक आकृति
अपने हृदय के
कैनवस पर
भावनाओं का
ब्रस डूबो कर
बना देना
तुम हो चित्रकार
बनाते हो
मन के विचार
मेरे भी विचारों को
संजोकर उसमें
रंग भर देना
अपनी कला का
इक परिचय मुझे भी
कुछ इस तरह देना
मैं कौन हूँ
ये न पूछना
इक धुंधली
बुझी सी
कुछ हद तक
मिटी सी
इक परछाई
जो तुम्हारे
मुड़ने पर बनेगी
वही, वही
परिचय होगा मेरा।