प्रभात तुम आ जाना

क्षितिज गिरि की भुजाओं से निकल 
दिव्यलोक की क्रीड़ाओं से विहल, 
चहुंदिशाओं में छा जाना 
प्रभात तुम आ जाना। 

विसर्जन वेदना के तम का कर 
रश्मि वलय से दिवस भर, 
सिंधु की लहरों पर रुक जाना 
प्रभात तुम आ  जाना। 

नक्षत्र - प्रकाश का कर संचार 
ले आना एक  सुखद समाचार, 
चिर नैराश्य को खंडित कर
प्रभात तुम आ जाना। 

बिलखते नींदों के पावस - काल से 
रूठे स्वप्नों के  झंकृत झंकार से, 
मधु - रस सप्त सुरों के लाना 
प्रभात तुम आ  जाना। 

वृहद पीड़ाओं का है झुंड यहाँ 
दुख पर प्रफुल्लित विक्षिप्त  जहां, 
स्वर्णिम  आशाओं का आभास ले आना 
प्रभात तुम आ जाना। 


तारीख: 03.04.2024                                    वंदना अग्रवाल निराली









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