क्षितिज गिरि की भुजाओं से निकल
दिव्यलोक की क्रीड़ाओं से विहल,
चहुंदिशाओं में छा जाना
प्रभात तुम आ जाना।
विसर्जन वेदना के तम का कर
रश्मि वलय से दिवस भर,
सिंधु की लहरों पर रुक जाना
प्रभात तुम आ जाना।
नक्षत्र - प्रकाश का कर संचार
ले आना एक सुखद समाचार,
चिर नैराश्य को खंडित कर
प्रभात तुम आ जाना।
बिलखते नींदों के पावस - काल से
रूठे स्वप्नों के झंकृत झंकार से,
मधु - रस सप्त सुरों के लाना
प्रभात तुम आ जाना।
वृहद पीड़ाओं का है झुंड यहाँ
दुख पर प्रफुल्लित विक्षिप्त जहां,
स्वर्णिम आशाओं का आभास ले आना
प्रभात तुम आ जाना।