शब्दों की बारात

शब्दों की बारात जब पृष्ठों की
डोली लिए पंगत लगाती है
सजावट हो भावों की, तो
कल्पना सुनहरा शामियाना फैलाती है
मेंहदी लगे जब स्याही की, विचारों
की लाली छा जाती है
उत्सव होता है जैसे किसी नवेली दुल्हन
के आने का जब..
कोई कविता अपनी चूनर लिए इठलाती है!
केवल शब्दों का मेल नहीं ये
केवल चिंतन का खेल नहीं ये
पृष्ठों के दर्पण पर भावों की मुँह दिखाई सी लगती है
कलम से कजरा लगवा कर जो एक कविता बन-ठन चलती है!


तारीख: 06.02.2024                                    प्रज्ञा कांत









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