सूने हृदय में

कवि के खाली, सूने हृदय में
काले बादलों सी है कविता।
अचानक ही आती है-
उमड़ते, घुमड़ते, बिल्कुल बेचैन।
विचारों का बंवंडर लिए,
कहीं क्रांतिकारी बिजली कड़कती है,
कहीं संवेदना की बयार चलती है।
सब कुछ भिगो जाती है,
बारिश सी वो कविता।


तारीख: 03.03.2024                                    विवेक नाथ मिश्रा









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