महाश्वेता देवी - जीवन परिचय

आरंभिक जीवन

महाश्वेता देवी, एक उल्लेखनीय भारतीय लेखिका, जिनकी रचनाएँ समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों के जीवन को दर्शाती हैं। महाश्वेता देवी का जन्म 14 जनवरी 1926 को ढाका, ब्रिटिश भारत (वर्तमान में बांग्लादेश) में एक साहित्यिक परिवार में हुआ। उनके माता-पिता, धरित्री देवी और मनीष घटक, दोनों ही साहित्य और सामाजिक मुद्दों में सक्रिय थे। इस परिवेश ने महाश्वेता को बचपन से ही साहित्य और समाज के प्रति गहरी समझ विकसित करने में मदद की।

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शिक्षा 


महाश्वेता देवी की शिक्षा ने उनके जीवन और साहित्यिक करियर की नींव रखी। रवींद्र भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता से उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की। इस दौरान, उन्होंने साहित्यिक थियोरी, आलोचना, और विश्व साहित्य का गहन अध्ययन किया। इस शैक्षिक बैकग्राउंड ने उन्हें विभिन्न साहित्यिक फॉर्म्स और शैलियों की समझ विकसित करने में मदद की, जिसका उपयोग उन्होंने अपने लेखन में किया। उनकी शिक्षा ने उन्हें साहित्य के माध्यम से समाजिक मुद्दों को उठाने और चर्चा में लाने का एक दृष्टिकोण प्रदान किया।

साहित्यिक यात्रा


महाश्वेता देवी की साहित्यिक यात्रा उनकी गहरी सामाजिक समझ और साहित्यिक प्रतिभा का परिचायक है। 1950 के दशक से उन्होंने समाज के हाशिए पर रहने वाले समुदायों के जीवन, संघर्षों, और आकांक्षाओं पर केंद्रित लेखन शुरू किया। उनके लेखन में आदिवासी, दलित, महिलाओं, और श्रमिक वर्ग की कहानियां प्रमुखता से दिखाई देती हैं, जो उनकी गहरी संवेदनशीलता और समझ को दर्शाती हैं।

उन्होंने विभिन्न विधाओं में लिखा, जिसमें उपन्यास, लघु कहानियाँ, निबंध, और नाटक शामिल हैं। उनकी लेखनी में जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया गया है, जैसे कि मानवाधिकार, स्त्री विमर्श, और आर्थिक असमानता। उनकी कृतियाँ न केवल साहित्यिक महत्व की हैं, बल्कि उन्होंने समाज में गहरी चेतना और परिवर्तन की लहर भी उत्पन्न की।

उनकी लेखनी में सामाजिक यथार्थवाद का एक गहरा तत्व मौजूद है, जिसे वे अपने गहन शोध और समुदायों के साथ व्यक्तिगत संपर्क के माध्यम से विकसित करती थीं। उनके लेखन में उन्होंने समाज के विभिन्न तबकों के जीवन को बड़ी ईमानदारी और संवेदनशीलता के साथ चित्रित किया, जिससे पाठकों को उनके संघर्षों और आकांक्षाओं की गहरी समझ मिलती है। उनकी लेखनी ने उन्हें न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रशंसा और सम्मान दिलाया।

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प्रमुख कृतियाँ

महाश्वेता देवी की कृतियाँ उनकी गहरी सामाजिक समझ और साहित्यिक कौशल का प्रमाण हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ समाज के विभिन्न वर्गों की जीवनी और संघर्षों को उजागर करती हैं।

  • हजार चौरासी की माँ

इस उपन्यास में महाश्वेता देवी ने नक्सलबाड़ी आंदोलन के प्रभाव को एक माँ के दृष्टिकोण से चित्रित किया है। यह कहानी सुजाता, एक माँ के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसका बेटा ब्रती, नक्सली आंदोलन में शामिल हो जाता है और अंततः पुलिस के हाथों मारा जाता है। इस कृति के माध्यम से, लेखिका ने माँ के अपार दुख और न्याय की उसकी खोज को बड़ी संवेदनशीलता और गहराई के साथ व्यक्त किया है। यह उपन्यास समाज में हो रहे राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों पर एक गहरी टिप्पणी भी प्रस्तुत करता है।

  •  रूदाली

"रूदाली" एक ऐसी महिला की कहानी है, जो पेशेवर रूप से शोक मनाने का काम करती है। इस कहानी के माध्यम से, महाश्वेता देवी ने राजस्थान की इस परंपरा को उजागर किया, जहाँ कुछ महिलाएँ दूसरों की मृत्यु पर रोने के लिए किराए पर ली जाती हैं। इस उपन्यास के माध्यम से वे सामाजिक विषमताओं, महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति, और उनके संघर्षों को गहराई से चित्रित करती हैं। "रूदाली" महिलाओं की ताकत और सर्वाइवल की कहानी है, जो समाज में उनके स्थान को नए सिरे से परिभाषित करती है।

  • अरण्येर अद्धिकार

"अरण्येर अद्धिकार" आदिवासी समुदायों के जीवन और उनके वन अधिकारों की लड़ाई को केंद्र में रखता है। इस उपन्यास के माध्यम से, महाश्वेता देवी ने आदिवासी समुदायों के संघर्षों और उनके पर्यावरण से गहरे संबंधों को दर्शाया है। लेखिका ने आदिवासी समाज की संस्कृति, उनके रीति-रिवाजों, और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को बहुत ही मार्मिकता और सच्चाई के साथ चित्रित किया है। यह उपन्यास समाज में व्याप्त असमानताओं और शोषण के खिलाफ एक मजबूत आवाज़ उठाता है।

निधन

महाश्वेता देवी का निधन 28 जुलाई 2016 को कोलकाता में हुआ। उनके जाने के बाद भी, उनका साहित्य और विचार आज भी अनेक लोगों को प्रेरणा देते हैं। उनकी कृतियाँ और समाज के प्रति उनका योगदान भारतीय साहित्य और समाजिक न्याय के क्षेत्र में उन्हें एक अमर स्थान प्रदान करता है।

 

उनके जीवन के कुछ किस्से :

महाश्वेता देवी के जीवन और कृतित्व में अनेक अनूठे किस्से और उद्धरण हैं, जो उनकी गहरी सामाजिक समझ और साहित्यिक प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। 

  1. आदिवासी समुदायों के साथ समय: महाश्वेता देवी ने अपने लेखन के लिए शोध करते हुए आदिवासी और दलित समुदायों के बीच काफी समय बिताया। एक बार जब वे झारखंड में आदिवासियों के बीच थीं, उन्होंने एक युवा लड़के की कहानी सुनी जिसने अपने समुदाय के लिए जमीन के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। इस अनुभव ने उन्हें "अरण्येर अद्धिकार" लिखने के लिए प्रेरित किया।
  2. सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्धता: उन्होंने एक बार एक सामाजिक न्याय सम्मेलन में भाग लिया जहाँ उन्होंने अपने भाषण में कहा, "असली शिक्षा वह है जो आपको मुक्त करती है।" यह उनके विश्वास को दर्शाता है कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को सामाजिक बेड़ियों से मुक्त करना और उसे सचेत और सक्रिय नागरिक बनाना है।
  3. लेखन प्रेरणा: एक अन्य अवसर पर, जब उनसे पूछा गया कि वे अपने लेखन के लिए प्रेरणा कहाँ से प्राप्त करती हैं, तो उन्होंने उत्तर दिया कि उनकी प्रेरणा उन लोगों के जीवन से आती है जिनके लिए वे लिखती हैं। उनका मानना था कि सच्ची कहानियाँ उन लोगों के जीवन में छिपी होती हैं जिन्हें समाज ने नजरअंदाज किया है।

उद्धरण

 "असली शिक्षा वह है जो आपको मुक्त करती है।" - यह उद्धरण महाश्वेता देवी के विचारों की गहराई को दर्शाता है और उनके साहित्यिक और सामाजिक कार्यों के प्रति उनके समर्पण को प्रकट करता है।

महाश्वेता देवी के जीवन कार्यों से जुड़े ये किस्से और उद्धरण उनके साहस, दृढ़ विश्वास, और सामाजिक न्याय के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। उनका जीवन और लेखन हमें यह सिखाता है कि साहित्य सिर्फ कल्पना की उड़ान नहीं है, बल्कि यह समाज को बदऔलने का एक मजबूत साधन भी है।


 


तारीख: 26.01.2024                                    यायावर









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