ठगमानुष

 

लगभग 300 सालों (1500- 1800) तक भारत के यात्रियों में एक खौफ था, क्यूंकि लोग अचानक से गायब हो जाते थे। कोई नहीं जानता था की उनके साथ क्या हुआ होगा। वे देवीय रूप से अचानक गयाब हो जाते, और फिर कोई खोज खबर नहीं मिलती थी। 
ऐसी घटनाओं से बचने के लिए लोग अकेले यात्रा करना सुरक्षित नहीं समझते थे इसलिए वे यात्रियों का समूह बनाते और फिर समूह में यात्रा करते थे। 
बस ! यहीं से ठगों की यात्रा शुरू हो जाती थी और यात्रियों की मौत का सफर भी।  

thug manush
ठग, मौत की देवी माँ भवानी की पूजा करते थे। ठग “जगीरा” के अनुसार, “यह माँ भवानी का आशीर्वाद है, वह खुद हमें शिकार भेजती है। हमें, शिकार के खून का एक भी कतरा व्यर्थ किये बिना, माँ भवानी को समर्पित करना है। ठगों की हर नई पीढ़ी ऐसा करने के लिए प्रतिबद्ध है।”

Thug manush

ठग “जगीरा” अपने साथियों के साथ यात्रियों से मिलता, उनका विश्वास जीतता और उनके साथ शामिल हो जाता। फिर रास्ते में अन्य ठग भी यात्रियों के रूप में उस दल में शामिल होते जाते। वे मजाक मस्ती करते हुए यात्रा करते, नाच गाना करते, किस्से कहानियां सुनाते और फिर मौका मिलते ही अपने काम को सलीके से अंजाम देते।
 

प्रसिद्ध उपन्यास “ठगमानुष” के अनुसार ठगों के कई गिरोह सक्रिय थे। ठगों के पास एक पुस्तैनी मानचित्र होता था जिसके लिए ठगों के समूहों में अक्सर लड़ाइयां होती थी, माना जाता था की जिस गिरोह के पास यह मानचित्र होगा वह ठगों का “सरदार” होगा। 
 “ठगमानुष” के अनुसार, ठगों का सरदार “जगीरा” उस पुस्तैनी मानचित्र में हर सम्भव रास्तों और अपशकुन देख सकता था। वह मानचित्र को देवी का आशीर्वाद समझता था।  
लेखक सुभाष वर्मा द्वारा लिखित यह उपन्यास इतिहास की एक खौफनाक सच्चाई को बयाँ करती एक खूंखार कल्पना है जिसमे ठगों के गिरोह की लूटपाट की यात्रा का वर्णन है।   


“ठगमानुष” के अनुसार “जगीरा” और उसके साथियों ने अंग्रेजो को भी नहीं छोड़ा। ठगों ने भेष बदलकर क्रांतिकारियों के साथ मिलकर न जाने कितने ही साहूकारों और अंग्रेजों के चाटुकारों को लूटा और मार डाला। वे राजाओं और नवाबों से समझौता करके उनके राज्य को लूटते और एक निश्चित रकम राजकोष में जमा करते। ठगों के गिरोह में दगा करने वाले को मौत की सजा दी जाती थी, ऐसे ही छल कपट के कारण जगीरा पकड़ा भी गया। 


इस उपन्यास को पढ़ना किसी वारदात को अंजाम होते देखने से कम नहीं, इतनी क्रूरता और खौफनाक मंजर को शब्दों में इस तरह पिरोया गया है की पढ़ने वाला शिहर उठे। 


तारीख: 14.02.2024                                    सुभाष वर्मा









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