पिछले कई दिनों से एक फ़िल्म की चर्चा बड़े जोरो पर है, नाम है "उड़ता पंजाब"। हर कोई अपनी अपनी राय दे रहा है तो मैंने सोचा क्यों न मैं भी इस अंधी भीड़ के साथ कुछ भौंक लूं। अभी शुरू ही होने वाला था की अचानक कोई "पहलाज निहलानी" चिल्लाने लगा। मुझे लगा की ऐसे कैसे किसी पर भी भौंक दूं, हाँ कुत्ता हूँ लेकिन इस भीड़ की तरह अँधा थोड़ी हूँ मैं।
तो मैंने सूंघना चालू किया तो पता चला की निहलानी जी तो कोई सेंसर बोर्ड में बैठते हैं। बीचारे बड़े ही शरीफ किस्म के इंसान लगे मुझे तो, फिर लोग उन्हें क्यों गालियां दे रहे हैं? अबकी बार भीड़ में सुंघा तो पता चला की यही हैं जो पुरे पंजाब पर कैची चलाने को उतारू हैं। कसम से बहुत गुस्सा आया। फिर मैंने गर्राते हुए सेंसर बोर्ड को सुंघा तो पता चला की यह तो नियमो के तहत काम करती है। सबसे पहले एक टीम गठित की जाती है जो की फ़िल्म को देखती और उसपर विचार करने के बाद फ़िल्म में से कट तय करती है और क्रमशः फ़िल्म देश में वर्तमान रूलिंग पार्टी के विचारको के समक्ष पेश की जाती है और फिर तय किया जाता हैं की फ़िल्म में पूर्णतः रूप से कितने कट होंगे।
अब आगे मै और सूंघता मुझे यंही गड़बड़ मालूम हो गयी। अब इस कुत्ते को क्या गड़बड़ महका, मैं आपको विस्तार से समझाता हूँ। बात ये है की पंजाब के युवाओं की वर्तमान स्तिथि सचमुच उड़ रही है, और पंजाब में अकाली दल नामक पार्टी है जो की वर्तमान रूलिंग पार्टी से गठबंधन में है। और ये गठबंधन कभी नहीं चाहेगी की अगले साल पंजाब में होने वाले चुनावो से पहले पंजाब का सच पुरे देश के सामने आये और उन्हें अगले वर्ष पंजाब में एक छोटे से फ़िल्म की वजह से मुँह की खानी पड़े। रुकिये थोडा सा जीभ निकाल कर हांफ लूं।
हाँ अब आगे सुनिये।
और ये जो भीड़ है जो मेरे बगल में खड़ी चिल्ला रही है फेसबुक और ट्विटर पर, ये वही अंधे है जो की अभी से कुछ महीनो पहले आई फ़िल्म 'मांझी' का ऐसा हश्र किया था इनलोगो ने की कहने पर भी पाप लगे। इन सब ने नवाज भाई की जी तोड़ मेहनत को रिलीज़ होने से हफ्ते भर पहले अपने अपने घरों में लैपटॉप पर खूब चाटा था और जमकर बंदरबांट किया था।
खैर अबकी बार भीड़ थोड़ी समझदार लग रही थी, और लग रहा था इस बार ये लोग वैसा कुछ भी नहीं होने देंगे। फिर तो मैं भी खूब भौंका जीभ बहार निकाल निकाल कर भौंका। क्यों ऐसा कर रहे हैं भई आप, ऐसे कैसे अनुराग बाबू के मेहनत कुचलियेगा आप? बताइये अनुराग सर इतना बढ़िया बढ़िया क्लासिक सिनेमा दिये हैं हमलोगो को और आप उनका सिनेमा पर रोक लगा रहे हैं। अनुराग जी ने हमारे हिंदी शब्दावली को काफी ऊंचाइयां दी हैं अपने देसी कलाकारों के द्वारा। उनका अंदाज ही अलग है। बड़े छोटे में फर्क करना हमने उन्ही से तो सीखा हैं। "वासेपुर" में कितनी सरलता से उन्होंने मनोज वाजपयी की सहायता से हमे ये फर्क समझाया है।
मेरा भौंकना बहुत काम आया, सारी भीड़ के साथ साथ मेरी भी आवाज सुनाई दी सबको, और 'उड़ता पंजाब' को पर लग गये। लेकिन कल मेरे साथ एक हादसा हो गया, मै अपनी ही गली से गुज़र रहा थी की किसी ने 'टोरेंट' नामक पत्थर से बड़ी जोर का मारा। मै अभी कायं कायं करता अपनी पूछ सटाये किनारे को हो रहा था तो देखा पत्थर पर निचे लिखा था 'उड़ता पंजाब'। तब तक में उसी अंधी भीड़ वाला एक आदमी आया और पत्थर को उठा कर चाटा और दूसरे को दे दिया और दूसरे ने तीसरे को और फिर पूरी भीड़ ने चाटा। मैंने सोचा मैं भी चाट ही लेता हु पत्थर को, फिर लगा छोड़ो, मैं अँधा थोड़ी हूँ।
अंत में पत्थर को बड़ी जोर से किसी पर फेंका गया, मैंने गली से मुँह निकाल कर देखा तो पता चला सामने अनुराग कश्यप खड़ा है।
-आवारा कुत्ता (समझदार)